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भारत में अनादि काल से मंदिरों
भारत में अनादि काल से मंदिरों 🛕 की प्रथा चली आ रही है, दक्षिण भारत में आज भी हिंदू संस्कृति का पालन हो रहा है| मंदिरों के माध्यम से *व्यापार* नहीं होना चाहिए, *मनुष्य शरीर कर्मों को काटने के लिए बना है, ना कि कर्मों को बढ़ाने के लिए* ऐसा व्यापार नहीं करना चाहिए जिससे परलोक बिगड़ जाए|
सृष्टि की रचना के साथ-साथ भगवान ने सनातन धर्म बनाया, जिससे लोगों को मार्गदर्शन मिल सके| यह किसी मनुष्य द्वारा बनाया हुआ नहीं है| हमें स्वयं भी सनातन धर्म का पालन करना चाहिए और दूसरों को भी बताना चाहिए|
मंदिरों का कार्य लोगों को भगवान के विषय में बताना है, हमारा असली व्यापार स्वयं को भगवत धाम जाने के योग्य बनाना है| योग्यता हम में है नहीं! क्योंकि हमारे अंदर *काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार दोष* भरे पड़े हैं|
व्यापार भी करना है, लेकिन इसलिए नहीं, कि बैंक बैलेंस बढ़ता रहे| हमारी भावना होनी चाहिए, कि मैं भी भूखा ना रहूं और अतिथि भी भूखा ना जाए|
सच्चे संतों की सेवा करो! उनकी कृपा से जीवन का उद्देश्य प्राप्त होगा| हमें भक्ति के द्वारा भगवान से अपना टूटा हुआ संबंध पुनः स्थापित करना है| हमें भगवान का गुणगान करना है|
भगवान, उनका नाम, उनका धाम, उनके गुण, उनकी लीलाएं, सब कुछ *परम पवित्र* हैं और राधारानी *परम दयामय* हैं|
मांस खाना *पाप* है और शराब पीना *महापाप,* ऐसा कार्य करना चाहिए, जिससे परलोक ना बिगड़े|
गाय एक पालतू पशु है, इसका दूध अमृत होता है, गाय का मल-मूत्र भी पवित्र है, भगवान स्वयं गाय चराते थे|