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अपना कहूं या बेगाना
बात कुछ साल पहले की है, जब मेरी BA लास्ट ईयर के परीक्षाए चल रही थी । परीक्षा केन्द्र मेरे गाँव से बहुत दूर था और हमारे लिए अनजान भी क्योकि उस तरफ कभी दौरा नहीं हुआ । परीक्षा केन्द्र पर मुझें सात बजे पहुँचना था इसलिए मैं और पिताजी लगभग पाँच बजे घर से रवाना हुए । हल्की - हल्की ठंड पड़ रही थे , फ़रवरी का महीना , परीक्षा का पहला दिन । मैं काफी उत्साहित थी क्योंकि पूरे साल जो पढ़ा , सीखा उसका परिणाम मुझे मिलने वाला था । हमारी गाड़ी तेज रफ्तार से चल रही थी , मानों उसको मुझसे जल्दी पहुँचना था। लेकिन कुछ ही देर बाद सुनसान जगह पर जाकर गाड़ी ने साफ - साफ जवाब दे दिया की अब मुझसे ओर नहीं चला जायेगा ।

आस- पास कोई व्यक्ति भी नजर नहीं आ रहा था जो मैकेनिक का पता बता सके और ना ही अभी सुरज निकला था । हम बहुत परेशान हो गये , समय भी निकला जा रहा था । बहुत देर तक हमनें इंतजार किया लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ । तभी अचानक से कुछ गाड़िया हमारी तरफ आती दिखाई दी लेकिन किसी के पास इतना समय नहीं था की वह हमारी परेशानी जान सके , कईयो से तो हमनें मदद भी मांगी पर उन्होंने कोई इच्छा नहीं जताई । अब हमारी परेशानी ओर भी बढ़ गई क्योकि हमारे पास काफी कम समय बचा था ।कुछ समझ में नही आ रहा था की क्या करे , जो होना था वह तो होकर ही रहेगा, कर भी क्या सकते थे हम, पर भगवान से यह देखा नहीं गया और हमारे लिए एक फरिस्ते के रूप में किसी को भेजा ।

एक बाइक सवार युवक हमारे पास आकर रुका और उसने पुछा की क्या हो गया । पिताजी ने सारी बात उस युवक को बताई तब उसने जवाब दिया मैं यहां अख़बार बाँट रहा हूँ , मुझे कुछ घरो में अख़बार देने है आप 5 मिनट मेरा इंतजार कीजिए मैं वापस आता हू । अपना काम पुरा करके वह युवक हमारे पास आता है ओर अपना परिचय देते हुए कहा की न्यूज पेपर एंजेंसी में काम करता हूँ । आप मुझ पर विश्वास कीजिये मैं आपकी गुड़िया को विश्वविद्यालय छोड़ दूंगा उस पर विश्वास करने के अलावा हमारे पास कोई ओर रास्ता भी नही था । मुझे उस समय बिल्कुल भी समझ नही आया की मैं गलत कर रही हूं या सही। मैं बिना समय गवाएं अपना जरूरी सामान लेकर उसके साथ चली गयी।

उस युवक ने भी इंसानियत और अपने अच्छे संस्कार दिखाते हुए मुझे बिना किसी तकलीफ के समय रहते हुए मेरे सेंटर तक पहुँचा दिया । हालांकि मेरे पास कुछ ही मिन्ट्स बजे थे। उन्होंने अपना मोबाइल निकाल कर मुझे दिया की आप अपने पिताजी से बात कर लीजिए । मैंने पापा से बात की हीं कि मेरा समय हो गया मैं अंदर चली गयी और वह युवक बिना कुछ बोले वहा से चलकर पिताजी के पास वापस गया ,गाड़ी को मैकेनिक के पास पहुंचाया और अपना कार्ड देते हुए कहा की अगर कभी भी इधर आस - पास किसी तकलीफ में हो तो आप मुझे याद कर सकते हो.......