...

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क्या ढूंढती हूं


घर छोड़ कर
बाहर जाना पैसे कमाना फिर
फिर घर से बाहर एक घर बनाना
ऐसा लगता है ये एक चक्रव्यू है और इससे बाहर निकलने का रास्ता नहीं है कोई।
ये जिंदगी एक गोलचक्कर हो गई है।
कई बार ऐसा लगता है की ये सब क्यों?
कई बार बाहर निकलने का रास्ता ढूंढते ढूंढते इसमें और फसी हुई महसूस करती हूं।
कई बार शंका होता है की बाहर निकलने का रास्ता है भी या नहीं।

कई बार लगता है ये सब खत्म होना चाहिए,ये मायाजाल ये सब जंजाल।
आखिर किस लिए है ये सब।

अगर इतना वक्त कहीं पहुंचने में लगाने के बाद भी,वहां पहुंच कर खुशी न मिले, लगे की अब क्या?
फिर किसी नए पड़ाव की तलाश
तो क्या बस यही जिंदगी है एक के बाद दूसरी तलाश ।

अब सवाल ये है की, यहां से क्या? आगे जाना चाहिए या रूक जाना सही होगा?
इस दौड़ में अगर रूक गए तो शायद मारा हुआ घोषित कर दिया जाएगा।
और ये जो जिंदा रहना है इसमें जिंदगी महसूस नहीं हो रही।

आखिर इतने सवाल क्यों हैं?
कई बार लगता है की ऐसे बस लोगों की तरह चलते क्यों नही रह सकती मैं?
आखिर इतने सवाल क्यों हैं मेरे?
जबाबों की पोटली की गांठ इतनी सख्ती से किसने बांधी?

चलो जाने दो सवाल अनकहे अनसुलझे रहने दो।
ये जो बेवजह बेमतलब बेमानी सी जिंदगी है इसे अच्छे कपड़े अच्छे जूते और झूठी मुस्कान के अंदर ऐसे दबा दो की सांस ना ले पाए और मर जाए दब कर इन सब में कहीं।


© life🧬