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पछतावा
*पछतावा*
मान सम्मान और प्रतिष्ठा के प्रायः सभी लोग भूखे होते है।अपने ऊसूल अपनी इज्जत को वो लोग परिवार में दूसरे लोगो की फिक्र नहीं करते हैं।फिर अंत में सिर्फ़ पछतावा ही हाथ लगता हैं।
उम्मीद है मेरी नई कहानी "पछतावा" आप सभी को पसंद आए।

पछतावा
देखो आशीष ..! भाई मैंने तुम्हारा रिश्ता पास ही के जमींदार की बेटी के लिए भेजा है।बड़े ही सुलझे हुए है वो और उनका परिवार।
सेठ पूनम चंद अपने बेटे आशीष से बोले।
तभी आशीष आश्चर्य से _"लेकिन मुझसे पूछा तो लिया होता पिताजी.? अभी तो मुझे अपने कई सारे अधूरे सपने पूरे करने है।"

"अरे तू कर लेना".! आशीष की बात बीच में ही काटते हुए, सेठ पूनम चंद ने कहा । "सुनो 100 एकड़ जमीन है और खानदानी रईस है । लड़की भी पढ़ी-लिखी संस्कार वाली है। अब ना मत करना", और अपनी छड़ी उठाकर अपने कमरे में चले गए ।
आशीष एक भावनात्मक लड़का है। वह सभी की भावनाओं का सम्मान करता है ।लेकिन, जब उसकी भावनाओं को न समझा जा रहा है ,तो वह टूट गया। पिताजी ने उसकी राय और खुशी की परवाह किए बगैर अपना फैसला उस पर थोप दिया।
सेठ पूनम चंद के दो बेटे और एक बेटी है। दोनों की शादी हो गई है ।अब आशीष ही बचा है,तो वह जल्दी ही अपनी जिम्मेदारियां से मुक्त होना चाहते थे। इसलिए आनन फानन में सगाई का दस्तूर कर दिया गया।
आशीष बेमन से रस्मों रिवाजों को निभाते गया।
जमींदार की बेटी का आशा नाम है। उसका वह भी चाहती थी कि,उसके ख्वाब पूरे हो लेकिन उसे भी झूठी प्रतिष्ठा के चलते बली चढ़ा दिया गया।

अपने मन में कड़वाहट लिए वह सेठ पूनम चंद की बहू बनी ।बड़ी हवेली में कई सारे नौकर चाकर काम करते थे। आशीष और आशा भी अपना नवजीवन का आगाज़ कर रहे थे मगर, दोनों को ही ख्वाब टूटने का दर्द था। अपने-अपने दायित्व को दोनों ही इमानदारी से निभाते रहे और, दिल में टूटे कांच की भांति अपने सपने लिए रहे।
आशा आशीष को कभी अपना दुख का साथी ना बना पाई और ना ही आशीष आशा को ।

एक दिन अचानक पूनम चंद को दिल का दौरा हुआ और उन्हें अस्पताल ले जाया गया। वहां उन्होंने होश में आते ही आशीष को बुलाया ।अपनी लिखी हुई वसीयत देते हुए सेठ पूनम चंद बोले_" तुम्हारे भाई बहनों को एक-एक हवेली और 20-20 एकड़ खेत दिए हैं। बाकी सब कुछ तुम्हारे नाम किया है तुम्हारा गुनहगार हूं मैं ..! मैंने देखा है आशा और तुम्हें अभी तक तुम दर्द के हमजोली नहीं हुए। तुम्हें रिश्ता ढोना नहीं जीना है। मुझे पता होता कि ,बहू के भी कुछ सपने हैं तो, हम अपने यहां पूरे कर देते। तुम दोनों को परदेश भेज देता मगर ,तुम दोनों तो हमसे कुछ बोल नहीं पाए ।
मगर एक दिन बहू का खुद ही से वार्तालाप सुन लिया था मैंने ।बहुत दुखी थी वह। अपने मन को मार कर फिर मुझे तुम्हारा ख्याल आया तुमने भी तो अपने सारे ख्वाब तोड़ दिए थे, मेरी झूठी शान के चलते।गया हुआ समय लौटा नहीं सकता, मगर आज फिर एक जिम्मेदारी दे रहा हूं ।खेती के बड़े हिस्से पर बच्चों के लिए विद्यालय और महाविद्यालय दोनों बनवाना ताकि, अब किसी भी बच्चें के सपने अधूरे ना रहे। यह हमारी खुशकिस्मती है कि, तुम दोनों टुटने पर भी बिखरे नहीं और हमने तुम्हें खोया नहीं। लेकिन आगे के बच्चे समझदार ना हो या फिर, मां-बाप मेरी तरह खुशकिस्मत ना हो ।कोई गलत कदम ना उठा ले इसलिए ,कह रहा हूं ।मां बाप बच्चो को बड़े शहर भेजें इतना बड़ा दिल नहीं कर पाते हैं। और बच्चे सपनों के टूटने पर खामोश हो जाते हैं ।लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। मैंने सरकार से परमिशन ले ली है ।लेकिन मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं कितने दिन रहे मालूम नहीं सोचा यह जिम्मेदारी भी तुम पर डाल दूं "..!
और सेठ पूनम चंद खामोश हो गए उनकी अंतिम इच्छा बेटे ने पूरी की और पूरे मन से इस काम में पत्नी आशा ने साथ दिया ।

हर किसी की हर एक ख्वाहिश पूरी नहीं होती ।यह सभी जानते हैं मगर हमारी गलती के कारण किसी दूसरे की इच्छा अधूरी रह जाए तो हम खुद को गुनहगार मान लेते हैं। जैसे सेठ पूनम चंद के साथ हुआ। लेकिन बिगड़ते माहौल में कैसे अकेले बच्चों को बाहर भेजे यह तो मां-बाप का ही कलेजा जानता है ।मगर बच्चों की ज़िद के आगे भी झुक जाते हैं।कई बच्चे मां-बाप से जुदा हो जाते हैं इसलिए परिस्थितियों के सांचे में ढलें ।हमेशा समय अनुकूल नहीं होता है ।हमें ही समय अनुसार रहना पड़ता है। सपने हर एक के टूटते हैं मगर, सब टूट कर बिखरते नहीं। कुछ हर स्थिति के लिए तैयार रहते हैं और डटकर मुकाबला करते हैं ।उम्मीद है आप भी इसी तरह डटे रहेंगे।आशा करती हूं आप सभी को पसंद आए...!! 🙏🙏


लेखक _#shobhavyas
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