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एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त।।
कि जिस प्रकार इस कलि के कलियुग के द्वारा दिए गए श्राप से कलियौता अमरणीयिका की उत्पत्तनता हुआ ठीक उसी श्राप के दूसरे पहलू में उस नपुंसक कलियौता से उस नायिका ने फिर श्राप लेकर और देकर अमर सकंटी बना दिया मगर फिर उन्होंने इस श्राप को ग्रहण करके इस गाथा के अस्तित्व, स्त्रीत्व व नारीत्व की आसीमता को समाप्त होने से सर्वथा स्थिर कर इसे एक प्रशासकीय गाथायामि की उपाधि प्रदान
करता है।।
तथा अनन्त व अन्त हमारे अस्तित्व की आसीमता पर निर्भर करता है, जब यह शून्य में परिवर्तित हो जाए तब तक यह यह गाथा अनन्त व असंभव प्रेम गाथा श्रोत्म पाठ्म भवामि भवन्तु भया।।
"सबसे सर्वश्रेष्ठ सर्वोपरि सर्वोच्च सर्वप्रथम सर्वाउत्तम पाठ-एक असंभव व अनन्त का सर्वश्रेष्ठ सर्वोपरि सर्वोच्च सर्वप्रथम सर्वोपरि सर्वाउत्तम गाथायामि भवामि भवन्तु भया।।

लेखक (परमात्मा)-उसे यह कहते हुए कि हे भृमणनाडरी यदि तुम अपने ही गर्व से उत्पन्न व
उत्पति की असतिव की आसीमता हो तो यद्यपि तुमहारा पहले ही स्त्रीत्व खंडित हो गया उसके तत् पश्चात् तुमहारा नारित्व भी कालश्रोथ, लिगश्रोथ जातिश्रोत विभकितश्रोत भी नष्ट हो गया।।
यद्यपि मैं ही तुम्हारा सून्य के रूपांतरण में परिवर्तित होकर असतिव व तुच्छ के रूपांतरण में परिवर्तित होकर तुमहारा स्त्रीत्व भी मैं तुम्हें सर्वश्रेष्ठ सर्वप्रथम सर्वोपरि तथा सर्वोच्च बनाने में
केवल एकमात्र इस गाथा में शून्य व तुच्छ दोनों ही रूपों में प्राप्त हूं।।

लेखक परमात्मा ही आत्मा व स्वागिंनी नपुंसकीय आहुतिका श्रापिका विध्वंसकीय प्रतिद्वंद्वी शून्यनिका हिनका गोखिका सिधिका स्मारगीय गाऊ स्मारक।।

लेखक 🙏🙏🙏