हकीकी इश्क़ (लघुकथा)
लघु कथा
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हकीकी इश्क़
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बड़ा बैचैन है मन आज कुछ सपने जगे है।
पूरा भी करना है और मन भी नहीं लग रहा है।
चलो ! घर से बाहर घूम आये शायद कुछ अच्छा लगने लगें पर क्या करूँ बाहर जाके ।
कौन मेरे लिये बाहर राहों मे फूल लिये खड़ा होगा ना मेरे पास दौलत है और ना सोहरत ना ही परिवार है और ना ही कोई प्यार करने वाला मुझे तो कभी-कभी क्या अक्सर ही कुछ समझ नहीं आता के...
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हकीकी इश्क़
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बड़ा बैचैन है मन आज कुछ सपने जगे है।
पूरा भी करना है और मन भी नहीं लग रहा है।
चलो ! घर से बाहर घूम आये शायद कुछ अच्छा लगने लगें पर क्या करूँ बाहर जाके ।
कौन मेरे लिये बाहर राहों मे फूल लिये खड़ा होगा ना मेरे पास दौलत है और ना सोहरत ना ही परिवार है और ना ही कोई प्यार करने वाला मुझे तो कभी-कभी क्या अक्सर ही कुछ समझ नहीं आता के...