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गुण....
स्त्री में स्त्रीयोचित गुण और पुरुष में पुरूषोचित गुणों का अभाव उनके ना केवल व्यक्तित्व, परंतु उनके माता पिता द्वारा दिये गए संस्कारों एवम पालन पोषण पर भी एक पृश्नचिन्ह लगाते है l
देखने में शायद ये विवादित वक्तव्य लगे, किंतु यदि आप अपने बहुमुल्य समय में से, कुछ पल इस विषय में सोचेंगे तो आपको इस छोटी सी बात की गहराई का अनुभव होगा l
विडंबना ये है कि आज की भागती दौड़ती जिंदगी में कोई भी किसी भी विषय को गंभीरता से लेना ही नहीं चाहता l इसे स्वार्थ कहे या लापरवाही कि कहीं भी अनुचित देख कर अक्सर उसे अनदेखा करने की प्रवृत्ति ने जैसे अपनी जड़ों से हर हृदय को मजबूती से बांध दिया है l एक सबसे आसान तरीका तो उपेक्षित करना है, दूसरा बिना जाने, समझे किसी के भी बारे में धारणा बना कर उसके उपर अनर्गल तंजो की वर्षा कर देना है l
अवश्य ही आपके मन में ये पृश्न तो आया होगा कि स्त्रीयोचित और पुरूषोचित गुणों का अभाव, स्त्री या पुरुष में किस प्रकार हो सकता है l चलिए, थोड़ा सरल कर देते है l माता, बहन, पुत्री से तो नहीं, हाँ इसकी गणना हम उस रिश्ते से आसानी से समझेंगे, जो अंतिम श्वास तक हमारे साथ रहता है, पति और पत्नी का रिश्ता l
नारी में कोमलता, करुणा, ममत्व जैसे गुण ही उसे नारी का स्वरूप पूर्ण करने में सहायक होते है l एक पत्नी एक परिवार को एक मां के समान संभाले, सबकी जरूरतों का ख्याल रखो, हर रिश्ते को प्रेम से सींचे l
इसी प्रकार एक पुरुष एक दृढ़ स्तंभ की भाँति परिवार का भार अपने कंधों पर ले l एक पालक की तरह सब की जिम्मेदारियां उठाये और उसकी छत्र छाया में नारी स्वयम को सुरक्षित महसूस करे l
ऐसे कुछ गुण जो स्वाभविक है, अक्सर जब भी इनकी कमी पाईं जाए,तो जीवन एक अंतहीन और अर्थहीन यात्रा पर बिखरा और टूटा हुआ चलता है l
विषय विस्तृत है और लिखने को बहुत l बाकी फिर कभी......

© * नैna *