...

7 views

क्या थी मैं? क्या हूँ अब.......
क्या थी मैं? क्या हूँ अब ? मैं जिसे किसी चीज की परवाह नहीं ना किसी से कोई उम्मीद थी।ना किसी पर भरोसा। मैं जो खुद मैं खुश हो जाया करती थी। खुद को अपना दोस्त मानती थी तब दोस्तों कि जरुरत नहीं होती थी मुझे। मैं जो खुद से बातें कर लिया करती थीं।जो अपना हाल खुद के सिवा किसी को बताना पसंद नहीं करती थी। हैं एक दोस्त थी मेरी, मेरी डायरी वो मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी अक्सर उसे हीं बताया करती थी दिल के हाल। classmates की तो नहीं पर teachers की favrote थी। तभी तो स्कूल fairwall पर वो भी रोए थे मेरे लिए।अच्छा लगता था मुझे बड़े -बड़े सपने देखना और उनको पूरा करना। तब कोई चाहिए नहीं था की कोई मुझे समझें कोई जाने पर खुद के साथ खुश थी फिर कुछ ऐसा हुआ मैं खुद को भूल गयी कोई मिला जो अपना सा लगा अब मैं खुद से खुद से बातें नहीं करती डायरी से दोस्ती टूट गयी जैसे मैंने खुद को खत्म कर लिया हो किसी के लिए। पर कहते हैं ना कोई भी हमेशा साथ नहीं रहता।सब कुछ रेत की तरह हाथ से फिसल गया और मैं फिर से अकेली हो गयी।पर अब फिर से खुद को दोस्त बनाना मुश्किल हो गया है। खुद से ही जंग होती है अब अक्सर। क्या खुद को ढूढ पाउगी या खुद में हीं ख़त्म हो जाऊंगी?
© श्वेता श्रीवास