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देथिन माई
"देथिन माई"

वह आता दो टूक
कलेजे के करता
पछताता पथ पर आता....
उपरोक्त पँक्तियाँ रामधारी सिंह दिनकर की "भिक्षुक"
कविता से है।
लेकिन मेरा भिक्षुक भिन्न है,वह है "देथिन माई"
"वह आता
मन को भाता
अपनी बढी हुई
दाढी पर,
हाथ फिराते
हुऐ आता
सदा मुस्कुराते
हुये कहता
देथिन माई......."
देथिन माई बंगला शब्द है, हिंदी मे कहते हैं दो माँ कुछ खाना दो मां.
वह आता चुपचाप मुख्य द्वार पर बैठ जाता,पास पडे कंकड उठा कर जमीन पर गणित हल करने लगता।
बात सन् 1965 की है, उस...