...
आज न जाने क्यों मन अजीब हो रहा था ,
मन कर रहा था पूरी दुनिया से दूर कही दूर चला जाऊ जहा कोई भी इंसान न हो
अपनी गाडी निकाली और चल पड़ा समुद की और,
ओफिस से कुछ घंटो की दुरी पर समंदर है , वहा शायद ही कुछ लोग दीखते है
शाम होते होते मैं पहुँच गया समुद्र की किनारे और एक पत्थर पर बिलकुल समुद्र की लेहरो की सामने बैठ गया
ऐसा लग रहा था, अब धरती का छोर खतम हुआ और यहाँ से आगे बस पानी ही पानी है
कितना सुखद द्रश्य है , समुद्र की और ऐसा लगता है जैसे इस सृष्टि में बस इस पत्थर के टुकड़े जितनी ही जमीन है , और आगे है ये अथाग समुद्र , ऊपर सिर्फ आसमान
आसमान में , कुछ दो चार बादल के तीतर बितर बिखरे हुए झुंड थे , और सामने सूर्य जो धीरे धीरे अपना तेज खो रहा था और पानी में डूबने की और बढ़ रहा था
कितना अजीब है न , दिन की धुप में हम जिस सूरज से आंख नहीं मिला पाते ,या गलती से आंख सूरज की और चली जाती है तो आँखे चोंध जाती है , वही...
मन कर रहा था पूरी दुनिया से दूर कही दूर चला जाऊ जहा कोई भी इंसान न हो
अपनी गाडी निकाली और चल पड़ा समुद की और,
ओफिस से कुछ घंटो की दुरी पर समंदर है , वहा शायद ही कुछ लोग दीखते है
शाम होते होते मैं पहुँच गया समुद्र की किनारे और एक पत्थर पर बिलकुल समुद्र की लेहरो की सामने बैठ गया
ऐसा लग रहा था, अब धरती का छोर खतम हुआ और यहाँ से आगे बस पानी ही पानी है
कितना सुखद द्रश्य है , समुद्र की और ऐसा लगता है जैसे इस सृष्टि में बस इस पत्थर के टुकड़े जितनी ही जमीन है , और आगे है ये अथाग समुद्र , ऊपर सिर्फ आसमान
आसमान में , कुछ दो चार बादल के तीतर बितर बिखरे हुए झुंड थे , और सामने सूर्य जो धीरे धीरे अपना तेज खो रहा था और पानी में डूबने की और बढ़ रहा था
कितना अजीब है न , दिन की धुप में हम जिस सूरज से आंख नहीं मिला पाते ,या गलती से आंख सूरज की और चली जाती है तो आँखे चोंध जाती है , वही...