छठ पर्व: धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक महत्व
छठ पर्व विशेषकर बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिंदू त्योहार है। यह मुख्य रूप से बिहार का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह चार दिवसीय व्रत सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है। इस पर्व का धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्व है। यह पर्व दीपावली के कुछ ही दिन बाद आता है। छठ पूजा का आरंभ कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय की परंपरा के साथ होता है, और यह चार दिनों तक चलता है।
उगते सूर्य को अर्घ्य तो सभी देते हैं, लेकिन बिहार ही एक ऐसा राज्य है जहां डूबते सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है। डूबते हुए सूरज को अर्घ्य देना प्रतीकात्मक रूप से व्यक्ति के मेहनत और तपस्या के फल प्राप्ति के समय को दर्शाता है। यह नवजीवन की शुरुआत का संकेत देता है। ऐसा माना जाता है कि डूबते सूरज को अर्घ्य देने का मुख्य कारण यह है कि सूरज का ढलना जीवन के उस चरण को दर्शाता है, जब व्यक्ति की मेहनत और तपस्या का फल प्राप्त होता है। मान्यता है कि डूबते सूर्य को अर्घ्य देने से जीवन में संतुलन, शक्ति और ऊर्जा मिलती है। यह भी दर्शाता है कि जीवन में हर उत्थान के बाद पतन होता है, और प्रत्येक पतन के बाद फिर से एक नया सवेरा होता है।
छठ पूजा की विधि:
1. नहाय-खाय की विधि: छठ में व्रती पहले दिन सुबह किसी पवित्र नदी,...
उगते सूर्य को अर्घ्य तो सभी देते हैं, लेकिन बिहार ही एक ऐसा राज्य है जहां डूबते सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है। डूबते हुए सूरज को अर्घ्य देना प्रतीकात्मक रूप से व्यक्ति के मेहनत और तपस्या के फल प्राप्ति के समय को दर्शाता है। यह नवजीवन की शुरुआत का संकेत देता है। ऐसा माना जाता है कि डूबते सूरज को अर्घ्य देने का मुख्य कारण यह है कि सूरज का ढलना जीवन के उस चरण को दर्शाता है, जब व्यक्ति की मेहनत और तपस्या का फल प्राप्त होता है। मान्यता है कि डूबते सूर्य को अर्घ्य देने से जीवन में संतुलन, शक्ति और ऊर्जा मिलती है। यह भी दर्शाता है कि जीवन में हर उत्थान के बाद पतन होता है, और प्रत्येक पतन के बाद फिर से एक नया सवेरा होता है।
छठ पूजा की विधि:
1. नहाय-खाय की विधि: छठ में व्रती पहले दिन सुबह किसी पवित्र नदी,...