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सहयोग के अभाव से आत्म निर्भरता की ओर
*सहयोग का अभाव से आत्म निर्भरता की ओर*

ये दुनिया विभिन्न प्रकार के पुष्पों से सजा हुआ एक बगीचा है । प्रत्येक फूल के रूप, रंग और सुगन्ध की भिन्नता इस बगीचे को आकर्षक और मनमोहक बनाती है । किसी पुष्प की सुगन्ध अधिक है किन्तु स्वरूप आकर्षक नहीं है और किसी पुष्प की सुगन्ध कम है किन्तु स्वरूप आकर्षक है । लेकिन प्रत्येक पुष्प बगीचे की सुन्दरता कायम रखने में अपनी भूमिका अवश्य निभाता है ।

इतने विशाल संसार में करोड़ों लोग रहते हैं जो अपने अपने स्वभाव-संस्कार, आचरण-व्यवहार और कार्यशैली के अनुरूप एक दूसरे से भिन्न हैं । शत प्रतिशत समानता किसी भी व्यक्ति में नजर नहीं आती ।

एक मशीन के अनेक छोटे बड़े कलपुर्जे एक दूसरे के सहयोग से मिलकर उस मशीन के माध्यम से किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं । यही सिद्धान्त मानव जीवन पर लागू होता है । हमारा जीवन एक दूसरे के सहयोग से ही गतिमान होता है । सहयोग एक ऐसी विशेषता है जो व्यक्ति की निजी क्षमता, भावना और नैसर्गिक संस्कारों से आचरण में आती है ।

जीवन में अनेक बार हम ऐसे अनुभवों से गुजरते हैं जब हम किसी व्यक्ति के कार्य में पूरा सहयोग करते हैं लेकिन हमें आवश्यकता होने पर वह मदद करने से इन्कार कर देता है । कभी पूरा दिन अपने ऑफिस या दुकान में काम करके थकी हुई हालत में घर आने पर हम अपने बच्चों से अच्छे व्यवहार की उम्मीद करते हैं लेकिन वे सारा समय शरारत करके और धमाल मचाकर हमें परेशान करते रहते हैं ।

ऐसी अनेक परिस्थितियों का सामना करते हुए हमें निराशा भरा आश्चर्य होता है कि हमारी छोटी छोटी उम्मीदों को भी लोग पूरा क्यों नहीं करते ? हमारी उम्मीदों के अनुरूप कोई हमसे व्यवहार क्यों नहीं करता ? क्या किसी से उम्मीद करना अपराध है ?

मन में इन प्रश्नों का उत्पन्न होना दर्शाता है कि हम अभी तक यह यह समझ नहीं पाये हैं कि हर व्यक्ति की पसन्द, भावनायें प्राथमिकतायें, क्षमतायें और आदतें एक दूसरे से भिन्न है । इसी कारण लोग हमारी साधारण सी इच्छाओं या उम्मीदों के अनुरूप कार्य नहीं कर पाते ।
प्रश्न उठता है कि क्या हम हम अपने परिवार, मित्र, सहकर्मी, समाज आदि से आशाएं रखना ही छोड़ दें ?

इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि हम अपनी श्रेष्ठ और शुद्ध भावनाओं के अनुरूप कार्य व्यवहार में आयें और दूसरे लोगों को उनकी आदतों के अनुसार कार्य करने दिया जाये ।
किसी भी कार्य को बेहतर ढ़ंग से करने के लिये हमें सम्मानपूर्वक उन्हें सलाह और निर्देश देना चाहिए । हमारी आशाओं पर खरे नहीं उतरने पर भी हमें उनसे निराश या नाराज होने के बजाय उम्मीदें रखने की मान्यता त्यागकर उसे स्वीकार करने की आदत अपनानी चाहिये ताकि हर परिस्थिति में हमारी भावनात्मक स्थिरता कायम रह सके और आपसी सम्बन्धों को बिगड़ने से बचाया जा सके ।

हम जानते हैं कि मात्र दो व्यक्तियों का एक जैसा सोचना, बोलना और व्यवहार करना कदापि सम्भव नहीं । फिर भी हमें आए दिन आश्चर्य होता रहता है कि लोग हमारी आशा अनुरूप व्यवहार या कार्य नहीं करते ।

व्यर्थ विचार और आवश्यकता से अधिक आशायें पालने का बोझ हमारे मन की शांति और आपसी स्नेह को प्रतिदिन घटाता है । हम सूक्ष्म रूप से एक दूसरे के प्रति स्नेह और सम्मान की भावनाओं का अपने ही हाथों से गला घोट देते हैं ।

इसलिये हमें यह समझ विकसित करनी आवश्यक है कि बाहर की किसी घटना या किसी व्यक्ति के व्यवहार से हमारे मन की स्थिति का कोई सम्बन्ध नहीं है । इसके लिये रोज लोगों का कार्य व्यवहार सकारात्मक रूप से स्वीकार करने के लिए अपने मन के विचारों और भावनाओं को व्यवस्थित करना चाहिये ।

उम्मीदें लगाने की आदत से ग्रसित व्यक्ति हमेशा निराश होकर दूसरों को दोषी ठहराता रहता है और उसे पूरी दुनिया से शिकायत ही रहती है । कोई उम्मीद पूरी न होने पर यदि हम भी ऐसी ही प्रतिक्रिया करते हैं तो इसके लिए हमारी आन्तरिक स्थिति ही जिम्मेदार है ।

यदि यह स्वीकार कर लिया जाये कि प्रत्येक व्यक्ति की सहयोग करने की भावना और क्षमता अलग अलग है, तो हमारे भीतर की नकारात्मकता स्वतः ही समाप्त होने लगेगी और आपसी सम्बन्ध मधुर बने रहेंगे ।

लोगों से मिलने वाले सहयोग का अभाव हमें हर कार्य अपने स्तर पर करने के लिये विवश करता है। इसका प्रत्यक्ष लाभ यही होता है कि हम प्रत्येक कार्य करने के अनुभवी हो जाते हैं । इसलिए सहयोग हेतु आवश्यकता से अधिक आशा किये जाने की तुलना में स्वयं को आत्म निर्भरता के पथ पर चलाना अच्छा है । हमारा आत्म निर्भरता का संस्कार औरों को भी आत्म निर्भर बनने की प्रेरणा देता है।

*ॐ शांति*

*मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान*
© Bk mukesh modi