...

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माफ़ी
क्या खता थी हमारी,
जो तुमने हमसे मुंह मोड़ा था।
देकर अपने दर से ठोकर,
दर दर भटकने को छोड़ा था।

क्या यही थी खता हमारी,
तुम्हारा भला हमने चाहा था।
तुम्हारे उज्जवल कैरियर को,
हमने मन से चाहा था।

भविष्य हो उज्जवल तुम्हारा,
मन में हमेशा यह भाव था।
जीवन पथ पर करो तरक्की,
दिल से यह चाहा था।

जब भी चाही तुमने मदद,
सच्चे मन से दामन भरवाया था।
जब मांगी नेक सलाह तुमने
ईमानदारी का धर्म निभाया था।

हमारी उत्तर देने में हुई देरी,
क्यों न समझी तुमने मेरी मजबूरी,
नौकरी का कर्म बंधन था,
और थी समयाभाव की मजबूरी।

आरोप भी तुमने न लगाए,
गुनहगार मुझे घोषित कर दिया था।
मैंने कुछ कहने की कोशिश की,
सुनने से जिसे तुमने इंकारा था।

सुना है इंसान गलती का पुतला,
जाने अनजाने,गर गलती है हो जाती,
गलती की दे दो तुम माफ़ी,
खड़ा है तुम्हारे सामने यह फरियादी।


© mere ehsaas