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बस इतना सा साथ 68
नेहा की मम्मी घर के मंदिर में बैठी होती है । आँखों में मायूसी होती है और दोनों हाथ जोड़ भगवान के सामने बैठी होती हैं। जुबान कुछ नहीं कह रही होती है , पर फिर भी आँखें कई सवाल पूछ रही होती हैं । तभी नेहा मम्मी को आवाज देती हुई, कमरे में आती है ।
नेहा - कहाँ हो माता रानी ।
( कमरे में घुसते ही मम्मी को मंदिर मैं , वो भी दिन में इस तरह बैठे देख थोड़ा हैरान हो जाती है। एक पल के लिए रूकती है फिर भगवन जी की तरफ देख अपने मन में कहती है। )
नेहा - भगवन जी सब ठीक है ना , और नहीं है तो
भी उसे ठीक कर दो। प्लीज घर के इस
तनाव को दूर कर दो।  प्लीज।
( फिर मम्मी की तरफ देखती है , और एक बार और आवाज लगाती है। ) 
नेहा - माता रानी , ओ माता श्री ....
( नेहा की जोर से आवाज सुन , नेहा की मम्मी का ध्यान नेहा की तरफ जाता है।  गर्दन हिला नेहा को इशारा करती हैं की सुन रही और उसे चुप रहने का इशारा करती हैं। नेहा भी बाहर सोफ़े पर जाकर बैठ जाती है । नेहा की मम्मी फिर माथा टेकते हुए अपने दुपट्टे से अपने आंसुओं को पोंछती है।  उन्हें गौरव की कही बात याद आती है - " जितने दिन नेहा यहाँ है , उसे आराम से रहने दो। हँसी- खुशी अपने घर जाने दो। " और मन में सोचती हैं। )
नेहा की मम्मी - सही तो कह रहा था , छोटा -सा
परिवार है , सब हँसी खुशी रहते हैं । यहाँ
तो एक दूसरे से ही .....
नेहा- ( बाहर से ही आवाज लगाती है । ) सुन ली
शेरावाली ने जितनी आपकी सुननी थी ।
अब आप जल्दी आओ, मुझे टेस्ट पेपर भी
बनाने हैं।
नेहा की मम्मी - ( हल्का - सा मुस्कुराते हुए। )
और माता रानी इस झल्ली को थोड़ी अक्ल
देना । बच्चों से ऊपर कुछ दिखता ही नहीं
है इसे । ( कहते हुए मथा टेक उठती हैं। )
नेहा-(कमरे में आते हुए। ) लो अब उनसे भी मेरी
शिकायत करने लगी। वैसे आज तो मैंने
कोई शिकायत का काम नहीं किया , बल्कि
आपकी शिकायत दूर करने वाला काम
किया है।
नेहा की मम्मी - अच्छा , ऐसा क्या काम कर
लाई।
नेहा - ( पर्ची हाथ में रखते हुए। ) ट्रेलर के पास
जा कर नाप ले आई हूँ ।
नेहा की मम्मी - सही किया जो ले आई , वरना
आज मुझे चलना पड़ता तेरे साथ ।
नेहा - तभी तो ले आई , लो अब इसे रखो मुझे
काम है बहुत ।
नेहा की मम्मी - ओ काम वाली, ( बोलते ही, एक पल के लिए दोनों चुप हो जाते हैं। फिर हँसते हैं। )
नेहा - हँसते हुए कामवाली , सही है अब मैं लाडो
रानी से सीधा काम वाली ...
नेहा की मम्मी- चुप कर पागल लड़की कुछ भी
बोलती है।
( नेहा कुछ भी बोले , इससे पहले ही नेहा की मम्मी उसे रोक देती है। ) हाँ अब मेरे साथ बहस
करने में तेरा काम बीच में नहीं आ रहा ।
नाप की फोटो भेज दे मनीष के नंबर पर ।
नेहा - ( फाटक से ) उसके नंबर पर क्यूँ भेजूं ।
आपके फोन से भेज देती हूँ, आंटी के नंबर
पर । ( कहते हुए मम्मी का फोन उठाती है,
फोटो खींचने के लिए । )
नेहा की मम्मी - आंटी ! मनीष से कुछ सीख
कितने मीठे से बोलता है वो मम्मी जी , मेरा
मन तो उसी में खुश हो जाता है।
नेहा - सही है , बड़ी जल्दी दल बदल लिया
आपने । इतनी जल्दी आप दामाद की
तरफ हो गई हो ।
नेहा की मम्मी- हाँ तो , अब तेरी मेहर करने के
लिए वो है तो उसकी मेहर मुझे तो करनी ही
है । वैसे वो है ही इतना हँस मुख की दो पल
में किसी को भी अपना बना ले ।
( तभी नेहा की मम्मी का फोन बजता है । नेहा के हाथ में ही होता है फोन । मनीष की मम्मी का फोन होता है , देखती है और कहती है। )
नेहा - लो कर लो मेहर। ( कहते हुए मम्मी को फोन देने लगती है। )
नेहा की मम्मी - क्यूँ किसका है फोन ? मनीष
का ?
नेहा - नहीं, आंटी का मतलब उसकी मम्मी का ।
नेहा की मम्मी - तो पहले तू बात कर ले ।
नेहा - ( नेहा फोन मम्मी के हाथ में देते हुए। ) ना
ना , फिर कभी । वो बहुत लंबा खींचती हैं।
आज नहीं।
( नेहा की मम्मी कुछ कहने लगती हैं, पर नेहा हडबडी में फोन थमा कहती है। )
कट जाएगा फोन, जल्दी उठाओ।
( नेहा की मम्मी जल्दी में फोन उठाती है । )
नेहा की मम्मी - राम राम, चौधरन ।
मनीष की मम्मी - राम - राम जी , कहाँ बिजी थे।
बड़ी देर में फोन उठाया।
नेहा की मम्मी - बिजी कहाँ, बस यूँही कुछ ना
कुछ काम लगा रहता है। आप बताओ सब
ठीक । चौधरी साहब, और बच्चे ।
मनीष की मम्मी- हाँ जी सब ठीक , आप तो जी
याद ही नहीं करते ।
नेहा की मम्मी - नहीं ऐसी बात नहीं है । वो बस
दिन यूँही भागम -भाग में निकल जाता है।
आप बताईये तैयारीयाँ कैसी चल रही हैं।
मनीष की मम्मी - हमारी तैयारीयाँ एक दम
बढ़िया चल रही हैं। आखिर इकलौते
लड़के की शादी है । कब से इंतजार था
सबको मनीष की शादी का , बस इसे
इसकी नेहा ही बड़ी देर से मिली । वैसे नेहा
कहाँ है ?
नेहा की मम्मी - नेहा .... ( नेहा अपना नाम सुनते
ही मम्मी को ना का इशारा करती है, इशारे में कहती है कह दो मैं बाहर हूँ। ) वो अभी तो यहीं
थी , छत की तरफ गई है शायद । बाकी तो
आपको पता ही है, किताबों और बच्चों से
फ़ुरसत कहाँ है उसे।
मनीष की मम्मी - अब तो फ़ुरसत डालनी ही
होगी । घर के भी तो हज़ार काम होते हैं ,
वो भी तो उसी को करने होंगे।
नेहा की मम्मी - मतलब ?
( मम्मी की आवाज में असमंजस देख नेहा मम्मी की तरफ देखती है और इशारा कर उनसे पूछती है की क्या हुआ ? मम्मी कुछ खास नहीं का इशारा कर फोन पर बात करती हुई अपने कमरे की तरफ चली जाती है। नेहा भी अपने काम में लग जाती है । )
मनीष की मम्मी - अरे , आप गलत मत समझो।
बहु की छोटी - मोटी जिम्मेदारी तो निभानी
ही पड़ेगी।
नेहा की मम्मी- नहीं, वैसी बात नहीं। वो तो
आपके बिना बोले ही कर लेगी वो सारे
काम। यहाँ भी घर के कामों में हाथ बटाती
ही है। बस इतना है कि आपके यहाँ से
इंस्टिट्यूट आने जाने में भी वक़्त लगेगा ।
यहाँ तो दस मिनट की दूरी पर है इंस्टिट्यूट
तो ज्यादा .....
मनीष की मम्मी- आप तो बेकार ही फिक्र करने
लगे । मेरी मीनू से कम थोड़ी है नेहा मेरे
लिए। पर बहू बेटी का थोड़ा तो फर्क़ होता
ही है । इन बातों का तो कोई अंत नहीं , ये
तो चलती ही रहेगी मैंने तो ये बताने के लिए
फोन किया था कि नेहा का लहंगा मनीष के
मामा के हाथ भिजवा दिया है । आज शाम
तक शायद आपको मिल भी जाए ।
नेहा की मम्मी - पर आपने तो नाप मंगवाया था ।
मनीष की मम्मी - हाँ , फिर इसके पापा बोले
आजकल बच्चे अपने मन पसंद के
डिजाइन से बनवाते हैं। क्या पता नेहा ने
कुछ सोच रखा हो । तू भेज दे वो बनवा
लेगी अपने से । पर सिलाई का खर्चा हम
देंगे , आखिर ये लड़के वालों की तरफ से
होता है ।
नेहा की मम्मी - नेहा का तो सीधा साधा - सा
काम है उसे डिजाइन तो हमें बताने पड़ते
हैं।
मनीष की मम्मी - ये तो बहुत अच्छी बात है,
वरना आजकल तो डिजाइन के नाम पर
कहीं इधर से कटवा लेते हैं कहीं उधर से ।
नेहा की मम्मी - हाँ ये तो है। पर मेरी तो तीनों ही
लड़कियां ऐसे कपड़े नहीं पहनती। ज्योति
को तो वैसे भी सूट पसंद ही नहीं है।
( उधर नेहा और निधि से बात कर रही होती है।)
नेहा - ये कब हुआ ।
निधि- बस पिछले ही हफ्ते।
नेहा - और तू मुझे अब बता रही है।
निधि - हमारी बात ही कहाँ हुई इतने दिनों से ।
तुम ठहरे बड़े आदमी, हर वक़्त बिजी।
नेहा- हाँ, अम्बानी का सारा बिजनेस तो मैं ही
देखती हूँ ना ।
निधि - अच्छा!
नेहा - पिटाई करनी पड़ेगी तेरी । चल अच्छा है
हम दोनों लगता है एक ही साथ सेटल होने
वाले हैं। वैसे तुझे दोनों में से कौन- सा
पसंद है।
निधि - दोनों ही ठीक है।
नेहा - ओए, ये शर्माने वाला ज़वाब घर वालों के
लिए ठीक है। मुझे तो सही- सही बात । या
दोनों में से कोई भी पसंद नहीं।
निधि- नहीं, ऐसा नहीं है। मुझे शुभम ठीक
लगता है ।
नेहा- क्या बात है, वैसे ये कौन है वो जिससे
रेस्टोरेंट में मिलकर आए थे ।
निधि - हाँ ।
नेहा - सही है , चल देखते हैं पहले किसके यहाँ
बैंड- बाजा बजता है।
निधि - मेरे ही बजेगा। तेरे तो ना जाने कितना
वक़्त लगाएंगे।
नेहा- देख दो तरह की शादियाँ होती हैं- एक झट
मंगनी पट ब्याह, जो तेरे केस में हो रहा है।
दूसरा होता है , होले-होले सिला के खा जो
मेरे केस में हो रहा है।
( दोनों हँसने लगते हैं। )
निधि- कभी - कभी कुछ ज्यादा ही सेन्स ऑफ
ह्यूमर बढ़ जाता है तेरा।
नेहा- नहीं मेरा तो हमेशा ही बढ़ा ही रहता है ,
बस कभी - कभी तुझे समझ आ जाता है।
निधि - अच्छा जी । तू बड़ी बोलने लग गई है रे ,
किसका असर है । हवा बदल रही है....
( तभी नेहा की मम्मी नेहा को आवाज़ लगाती है।)
नेहा की मम्मी - नेहा, नेहा..
नेहा- ( मम्मी को ज़वाब देती है। ) हाँ, आई । ( फिर फोन पर निधि से कहती है। ) ले बदल गई
हवा। माता रानी का बुलावा आया है।
निधि- चल फिर बाद में बात करते हैं। आंटी को
कुछ काम होगा। ।
नेहा - हम्म, बता देना जो भी खबर हो ।
निधि- हाँ जी मैडम जी पक्का। bye
नेहा - bye
( कहते हुए नेहा मम्मी के पास जाती है। )
नेहा - हाँ मम्मी।
नेहा की मम्मी- माँ का काम करने में तो टेस्ट
पेपर याद आते हैं , और वैसे फोन पर लगे
रहते हो।
नेहा - ताने मत मारो आप , काम बताओ । वैसे
भी मैं साथ - साथ काम ही कर रही थी ।
नेहा की मम्मी- हाँ - हाँ बस रहने दे। ( फिर अपना फोन देते हुए कहती हैं। ) देख मनीष की
मम्मी ने मान- तान की लिस्ट भेजी होगी।
( नेहा फोन में लिस्ट देखती है। )
नेहा - ये लिस्ट ..... शादी तक की होगी ।
नेहा की मम्मी- ( हँसते हुए। ) ऐसी तो अभी कई
लिस्ट आएंगी।
नेहा- ऐसे तो .....
नेहा की मम्मी- बस कुछ उल्टा-पुल्टा मत
बोलना । ये सब करना पड़ता, कुछ भी कमी
हो तो जिंदगी भर तुझे ही सुनना पड़ेगा। अब
इस पर कोई क्यूँ लेकिन नहीं, ये बड़ों का
काम है बड़ों को निपटाने दो । तू बस इसको
काग़ज़ पर उतार दे ।
( नेहा काग़ज़ पर लिस्ट उतारती है , और मन ही मन सोचती है ये शादियाँ सिर्फ रिश्तों में क्यूँ नहीं बसती। क्यूँ इतनी लेन देन की गाड़ियों पर है बारातों की रौनक सजती। )

सब रिश्तों से पाक,
सब रिश्तों से गहरा
होता है सात फेरों का
सात जन्मों का बंधन
पर फिर भी क्यूँ
बुनियाद इसकी,
सवालों से शुरू होती है
क्यूँ रिश्ते की खुशियों की चाबी
बस मान-तान पर टिकी होती है।

कहने को हर कोई कहता है,
हम वक़्त के साथ चलते हैं
ख़्यालों को हम ,
नए ज़माने संग बदल चुके हैं
पर फिर भी,
लड़की की डिग्री से ज्यादा
लड़के वालों की तिल माइने रखती है
संस्कारों की धरोहर से ज्यादा
शानो- शौकत की सीढ़ी
दिल को प्यारी लगती है।

लड़का डॉक्टर ,
तो बड़े शौक से , इतराकर
मांगे सुनाई जाती हैं
पर लड़की की पढ़ाई
मानो पेड़ों के पत्तों से कराई जाती है
उसके मुकाम की पहचान
जैसे बस काले मोतियों के नाम है
नौकरी और कमाई तो
बस लाल रंग की सौगात है।

ये कैसी बदली दुनिया है
ये कैसी उजली सोच है
जो तिल ही सम्मान दिलाए
ससुराल में मान दिलाए
एक पल में ही सारी खुदारी को
लड़के वाले, लड़की वाले कह
बेकार में ही उडनछू कर जाए
दहेज नहीं तेरी खुशहाली है
मांग नहीं ये रीत है
कह सबको उललू बनाए ।

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© nehaa