मिस रॉन्ग नंबर 12
#रॉन्गनंबर
~~~~ पार्ट 12 ~~~~
(जीत फोन आए लड़की की मदद के लिए निकलता है~~~~)
आखरी पल~~~~
"देखो..., तुम मुझे शुरुवात से बताओ.... तुमने मुझे कहां देखा था ??... मेरा नाम कैसे जानती हो ??? और मैंने , तुम्हे कहीं देखा है.. ऐसा तो मुझे याद नहीं आता है...! तुम सारी बाते खुल कर बताओ...! कुछ छुपाओ नहीं...! मेरी तो समझ में तुम्हारी कोई भी बात नही आ रही है.....! " ..... जीत
"अरे, जरा धीरज तो धरो....! सब बताती हूं..! इतनी जल्दबाजी भी सही नही मानी जाती...!" फिर से उसके चेहरे पर एक आकर्षक मुस्कुराहट तथा नजरों की शोखियों की झलक दिखी...
अब आगे~~~~
" सुनो... अब मैं तुम्हे पूरी बात बताती हूं...! तीन चार दिन पहले की बात है...!
उस दिन तुम बस स्टॉप पर खड़े थे, बस के इंतजार में, उस दिन मैं भी उसी बस स्टॉप के पास अपने फ्रेंड के इंतजार में खड़ी थी, हम दोनों को मिल कर कहीं जाना था ....!
मैं.. पेशे से एक पत्रकार हूं, भारतीय पुरातन विशेष गुढ़ विद्याओं पर मैं रिसर्च करती हूं, उसमें से कुछ, जो सही लगती है, उसे सीखती भी हूं....! ताकि वास्तविकता और अंधश्रद्धा के बीच जो भेद है उसे समझ कर उस फर्क के साथ मैं वो ज्ञान - विज्ञान लोगों के सामने प्रस्तुत कर पाऊं, यही मेरा काम है ।
"उस दिन जब मैं बस स्टॉप के पास मेरी दोस्त के इंतजार में खड़ी थी, तब बस स्टॉप पर ज्यादा लोग नहीं थे और मैं हेल्मेट पहने ही खड़ी होने के कारण तुम मेरा चेहरा नहीं देख पाए थे किंतु मैं पत्रकार होने की वजह से मेरी नेचुरल स्वभाव के कारण मैं चौकस नजर से हर तरफ ध्यान रख रही थी ।
बस आने के पश्चात तुम हड़बड़ी में जब बस में घुसे तब तुम्हारे पैंट की पीछे की जेब में रखा तुम्हारा वॉलेट गिर गया था जिसे मैंने उठा लिया... मैने तुम्हे हैलो... सुनो... ऐसी आवाज भी लगायी क्योंकि मुझे तुम्हारा नाम तब पता न था...! इसलिए शायद तुम्हे मेरा पुकारना पता ही न चला और बस निकल गई... ।
मेरे पास दो ही रास्ते थे या तो बस का पीछा कर के तुरंत तुम्हे तुम्हारा वॉलेट वापस करूं या फिर बाद में किसी तरह लौटा दूं...! तुम बस से गए... तो मुझे लगा की शायद तुम रोज ही बस से आते जाते हो... तो तुम्हे ढूंढना मेरे लिए आसान था । यहीं आकर तुम्हे मै लौटा सकती थी...! जब की.. मैं बस का पीछा भी कर सकती थी लेकिन बस के निकलने के तुरंत बाद ही मेरी दोस्त भी आगयी तो मुझे मेरे असाइनमेंट के लिए जाना ज्यादा जरूरी था । तो मैंने तुम्हारा वॉलेट अपने बैग में रख दिया था ....!
( क्रमशः ~~~~ )
(आगे की कहानी की प्रतीक्षा करिए... अगले अंक में हम फिर जल्द ही मिलेंगे आगे क्या हुआ जानने के लिए...)
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© Devideep3612
~~~~ पार्ट 12 ~~~~
(जीत फोन आए लड़की की मदद के लिए निकलता है~~~~)
आखरी पल~~~~
"देखो..., तुम मुझे शुरुवात से बताओ.... तुमने मुझे कहां देखा था ??... मेरा नाम कैसे जानती हो ??? और मैंने , तुम्हे कहीं देखा है.. ऐसा तो मुझे याद नहीं आता है...! तुम सारी बाते खुल कर बताओ...! कुछ छुपाओ नहीं...! मेरी तो समझ में तुम्हारी कोई भी बात नही आ रही है.....! " ..... जीत
"अरे, जरा धीरज तो धरो....! सब बताती हूं..! इतनी जल्दबाजी भी सही नही मानी जाती...!" फिर से उसके चेहरे पर एक आकर्षक मुस्कुराहट तथा नजरों की शोखियों की झलक दिखी...
अब आगे~~~~
" सुनो... अब मैं तुम्हे पूरी बात बताती हूं...! तीन चार दिन पहले की बात है...!
उस दिन तुम बस स्टॉप पर खड़े थे, बस के इंतजार में, उस दिन मैं भी उसी बस स्टॉप के पास अपने फ्रेंड के इंतजार में खड़ी थी, हम दोनों को मिल कर कहीं जाना था ....!
मैं.. पेशे से एक पत्रकार हूं, भारतीय पुरातन विशेष गुढ़ विद्याओं पर मैं रिसर्च करती हूं, उसमें से कुछ, जो सही लगती है, उसे सीखती भी हूं....! ताकि वास्तविकता और अंधश्रद्धा के बीच जो भेद है उसे समझ कर उस फर्क के साथ मैं वो ज्ञान - विज्ञान लोगों के सामने प्रस्तुत कर पाऊं, यही मेरा काम है ।
"उस दिन जब मैं बस स्टॉप के पास मेरी दोस्त के इंतजार में खड़ी थी, तब बस स्टॉप पर ज्यादा लोग नहीं थे और मैं हेल्मेट पहने ही खड़ी होने के कारण तुम मेरा चेहरा नहीं देख पाए थे किंतु मैं पत्रकार होने की वजह से मेरी नेचुरल स्वभाव के कारण मैं चौकस नजर से हर तरफ ध्यान रख रही थी ।
बस आने के पश्चात तुम हड़बड़ी में जब बस में घुसे तब तुम्हारे पैंट की पीछे की जेब में रखा तुम्हारा वॉलेट गिर गया था जिसे मैंने उठा लिया... मैने तुम्हे हैलो... सुनो... ऐसी आवाज भी लगायी क्योंकि मुझे तुम्हारा नाम तब पता न था...! इसलिए शायद तुम्हे मेरा पुकारना पता ही न चला और बस निकल गई... ।
मेरे पास दो ही रास्ते थे या तो बस का पीछा कर के तुरंत तुम्हे तुम्हारा वॉलेट वापस करूं या फिर बाद में किसी तरह लौटा दूं...! तुम बस से गए... तो मुझे लगा की शायद तुम रोज ही बस से आते जाते हो... तो तुम्हे ढूंढना मेरे लिए आसान था । यहीं आकर तुम्हे मै लौटा सकती थी...! जब की.. मैं बस का पीछा भी कर सकती थी लेकिन बस के निकलने के तुरंत बाद ही मेरी दोस्त भी आगयी तो मुझे मेरे असाइनमेंट के लिए जाना ज्यादा जरूरी था । तो मैंने तुम्हारा वॉलेट अपने बैग में रख दिया था ....!
( क्रमशः ~~~~ )
(आगे की कहानी की प्रतीक्षा करिए... अगले अंक में हम फिर जल्द ही मिलेंगे आगे क्या हुआ जानने के लिए...)
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