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मल्लू के घर पर तुरई...
मल्लू के घर पर तुरई

बड़ा अजीब सा शीर्षक लग रहा है ना ये। पर महज ये एक शीर्षक नहीं है बल्कि मेरे गांव की एक प्रचलित कहावत है हालांकि ये कहावत यूँ ही मजाक के रूप में शुरू हुई थी पर जब आप ये पूरी दास्तान सुन लेंगे तो निर्णय आपको करना है कि ये एक मजाकिया कहावत है या कोई सीख है। कहानी सुनाने से पहले थोड़ा सा आपको गम्भीरता की और ले जाता हूँ, दुनिया में 80 प्रतिशत पुरूष अपनी पत्नी से पहले मर जाते हैं और 20 प्रतिशत संख्या ऐसी होती हैं जहां पत्नियां पहले अपने पति को छोड़कर चली जाती हैं, ये उन्ही पुरुषों के साथ होता है जो शापित होते हैं, अब आपके मन में ये सवाल उठेगा की केवल पुरूष को ही शापित क्यों कहा, हो सकता है मैं आपको स्त्री विरोधी लगूं या आपको लगे कि मुझमें स्त्रियों का दुख समझने की कूबत नहीं है।
पर आपको बता देना चाहता हूँ कि हम जिस देश में रहते हैं वहाँ स्त्री को विशेष दर्जा प्रदान है जहां भी बहुत अधिक सम्मान, श्रद्धा या उनके उपकार और कृतज्ञता को दर्शाना हो उसे मैया या माता का दर्जा दे दिया जाता है। जैसे हम धरती को माता, गऊ को माता और, देश को भारत माता व पवित्रता की निशानी गंगा को गंगा मैया कहकर पुकारते हैं। स्त्रियों की पुरुषों के बाद मरने की भी एक विशेष वजह रहती है पहली तो वे प्रायः पुरुषों से कम उम्र की अवस्था में उनकी जीवन संगिनी बनती हैं, दूसरा वो पुरुषों की तरह दुर्व्यसनों से रहित होती हैं जैसे चिलम , गांजा, बीड़ी सिगरेट और शराब का कम या न के बराबर प्रयोग करना, हालांकि जब आधुनिकता का दौर शुरू हुआ और नारी समानता की मुहिम चली तो स्त्रियां भी इन व्यसनों से अपने आपको दूर नहीं रख पाईं। साथ ही स्त्रियों ने हमेशा शारिरिक मेहनत की वो भोर सवेरे उठकर रात को सोने जाने के समय तक काम में लगी रहती हैं जबकि पुरूष इन कामों में अपना हाथ नहीं बंटाते हैं, इन कामों से स्त्री फिट रहती है, दूसरा पुरूष हाड़ तोड़ मेहनत करते हैं, और बहुत सी चिंताओं से ग्रस्त रहते हैं तो धीरे धीरे करके रोज थोड़ा थोड़ा मरते रहते हैं और आखिरकार मर जाते हैं। ये मैं नहीं कह रहा बल्कि विज्ञान के एक लेख में मैंने कोई 20 बरस पहले पढा था। किताब का नाम था कादम्बिनी। अब बात करते हैं मल्लू के घर की तुरई की।

मल्लू मेरे गांव का एक बुजुर्ग था जो मेरे बचपने में चल बसा था। मल्लू की उम्र कोई 12 बरस की रही होगी जब उसकी शादी 8 साल की उम्र वाली रामली से हो गई थी। 14 कि उम्र में मल्लू रामली का गौना करके ले आया और 17 साल का मल्लू एक लड़की का पिता बन गया, ये वो दौर था जब गांवों में न सड़कें थी न बिजली और पीने का पानी कुएं से भरकर लाना होता था उसमें भी वर्ण व्यवस्था के हिसाब से चार घाट हुआ करते थे, आटा सुबह 4 बजे पत्थर की चक्की से पीसा जाता था।
मल्लू शुद्र था। 13 साल की कच्ची उम्र में रामली माँ बन गई पहली संतान बेटी हुई, उस उम्र में न मल्लू को लड़की के होने से फर्क पड़ा न रामली को, दोनों बच्ची को बहुत प्रेम से पालने लगे, गांवों की बड़ी समस्या है कि जब बच्चे माँ बाप बन जाते हैं तो उनके माता पिता अपनी सब जिम्मेदारी से मुक्त हो उन्हें न्यारा(अलग घर कर देना) कर देते हैं। मल्लू और रामली कर साथ यही हुआ, दोनों ने एक खेजड़ी की छांव में झोंपड़ी बना ली और खुशी खुशी रहने लगे। मल्लू अपने छोटे से तीन बीघा को जोतता और शहर में जाकर मजदूरी करने लगा था, खेती केवल सावनी होति थी जो कि बरसात पर निर्भर थी मजदूरी नाम मात्र की होती थी क्योंकि काम कम होता और काम करने वालों की संख्या ज्यादा होती, अधिकतर उन्हें घरों मकानों के निर्माण कार्य में ही मजदूरी मिलती थी। पर जैसे तैसे वो गुजारा कर लेते थे।

कुछ समय बाद उन्हें एक लड़का और हुआ, मल्लू ने गांव बस्ती में बताशे और गुड़ बांटा , गांवों में मुख्य मिठाई यही होती थी। उस वक़्त तक मल्लू और रामली बेटे बेटी का फर्क महसूस करने जितने परिपक्व हो चुके थे, नियति बड़ी क्रूर होती है गांव में माता(चेचक) फैली और मल्लू का बेटा उसमें काल का ग्रास बन गया। मल्लू और रामली बहुत दुखी हुये। वो फिर से पुत्र चाहते थे, इसी चाह में रामली फिर से माँ बनी और एक लड़की और हो गई, रामली और मल्लू ने इसे नियति का खेल समझते हुए फिर एक बच्चा और पैदा किया वो भी लड़की हुई, और उसके बाद रामली कभी माँ नहीं बन पाई। सामाजिक विडम्बनाओं और गांवों की गन्दी सोच ने अब उन्हें दुखी करना शुरू किया, लोग सुबह सुबह मल्लू का मुहँ देख लेते तो उसकी पीठ के पीछे थूकते थे और उसके खोज बालने लगे(पाँव के निशान वाली मिट्टी को उठाकर चूल्हे में डाल देना) मल्लू सब समझता था कि उसे नपूता(जिसके बेटा न हो) समझने भी लगे हैं और कहने भी लगे हैं, उससे ज्यादा ज्यादती रामली को सहन करनी पड़ती थी उसे घर बाहर दोनों जगह ताने मिलने लगे और गांव के भाई बन्धु या जाति में विशेष प्रयोजनों में उससे कोई काम नहीं करवाया जाता था। उस गांव के व्यवहार ने मल्लू को शराबी बना दिया। लोग उसे कहते खाओ पियो मौज करो तुझे कौनसा पोतों के लिए धन करना है। मल्लू की भी यही सोच हो गई वो शराब पीकर रामली को तीन तीन बेटी जनने के आरोप लगाता और हाथ भी उठा देता। गरीबी में आदमी दो ही अवस्थाओं को प्राप्त करता है बचपन और उसके बाद सीधा बुढ़ापा, पैसे वालों की तरह उन्हें कभी जवानी नहीं आती गरीबी और दुख में दोनों समय से पहले बुढ़ा रहे थे। पहली बेटी की 10 साल की उम्र में शादी कर दी। कर्ज कर लिया था कम कमाई चार पेट और शराब की आदत से मल्लू की माली हालत बद से बदतर होती चली जा रही थी, कई बार वो रामली को पीट भी लेता था।

रामली कभी उसे प्रत्युत्तर नहीं देती बस अंदर ही अंदर कुढ़ती और रोती रहती। कुछ समय बाद बाकी की दोनों बेटियां जवान होने लगी एक दिन मल्लू ने रामली को पीटना शुरू किया तो दोनों बेटियों ने शराबी बाप को धक्का मारा, उससे मल्लू और चिढ़ गया। पर उसके बाद रामली पर हाथ न उठाया। वो बुरा नहीं था पर समझदार भी नहीं था, गांव वाले उसका अपमान करते थे वो भी जहर का घूंट पी लेता था। एक बार घर में सब्जी बनाने को कुछ नहीं था तो रामली ने आटे को गूंथकर और उसे बेसन गट्टे की तरह उबाल कर सब्जी बना दी। जो मल्लू को बिल्कुल अच्छी नहीं लगी और उसने थाली फेंक दी, भूखे पेट ही सो गया। परन्तु रामली को नींद नहीं आई। उसने उठते ही जो पहला काम किया वो था तुरई का एक बीज अपनी खेजड़ी की जड़ों के पास बो दिया। बेटियां और रामली रोज तुरई की बेल को धीरे धीरे बड़ा होते देखती और खेजड़ी पर चढ़ते देखती। वक़्त आया कि बेल खेजड़ी के पेड़ से होते हुये उसकी झोंपड़ी के ऊपर फैल गई और उसमें बहुत सारी तुरई लगने लगी। उसके बाद मल्लू की किस्मत थोड़ी बदली और गांव में से सड़क निकलने का काम शुरू हुआ वहां ओर मल्लू को रोज दिहाड़ी मिलती थी। मजदूरी मिलने से कुछ पैसा जमा करके उसने अपनी दोनों बेटियों के हाथ पीले कर दिए। अब घर में मल्लू, रामली और सन्नाटे के अलावा कुछ शेष नहीं था। पर रामली हर बार तुरई जे बीज बो देती और फिर तुरई लहलहा के झोपड़ी पर चढ़ जाती।

बड़ी बेटी को बेटा हुआ तो उसने वो अपने माता पिता को गोद देना चाहा पर उसके ससुराल वालों ने उसकि एक नहीं सुनी। इससे मल्लू को बहुत ठेस पहुँची। रामली अब अकेलेपन की वजह से बीमार रहने लगी थी। पर अभी भी मल्लू की पूरी सेवा करती थी। वो कभी मल्लू को बुरा भला नहीं कहती थी। सड़क पर काम करते हुए वो किसी से दोस्ती कर बैठा था जो कि बड़ा ही चालाक आदमी था वो मल्लू के पैसे की ही शराब पीता और उसी की मजाक उड़ाता एक दिन उसने नशे में कहा भाई मल्लू तेरी बीवी ही तो माँ नहीं बन सकती तू तो बाप बन सकता है दूसरी ले आ, कर ले बेटा पैदा, बुढ़ापे का सहारा हो जाएगा। शराबी मल्लू को कुछ समझ न आया और उसके चक्कर में वो पैसे देकर एक औरत घर के आया, दूसरी औरत के आने से रामली टूट गई और खटिया पकड़ ली, एक दिन जब मल्लू काम पर गया था वो पैसे देकर आई औरत मल्लू के घर से और कुछ तो क्या मिलना था उसकी बीवी के पांव के चांदी के कड़े और घर के बर्तन उठा कर भाग गई। मल्लू के समझ में आ गया था उसे ठग लिया गया। उसने रामली से बहुत माफी मांगी पर शायद रामली उसे माफ न कर पाई और अपने दर्द के साथ दुनिया को अलविदा कह गई। अब मल्लू इस भरी दुनिया में अकेला रह गया था। वो कभी काम पर जाता कभी पीकर पड़ा रहता। वो रामली की लगाई उस तुरई की बेल को निहारता रहता कभी भी उसे सूखने नहीं देता था। पर उसने कभी भी उस तुरई की बेल से कोई तुरई नहीं तोड़ी उसे वो बेल रामली सी लगती और उसपर लगने वाली तुरई में अपनी बेटियाँ दिखती।

बेल पर तुरई लगती और सूख जातीं, गांव में लोगों के पास ज्यादा काम धाम न होता था तो वो मंडलियों में ताश खेलते थे, कुछ ताश खेलते कुछ उन्हें देखने वाले उनके आज बाजू बैठे रहते, गांव के उन्हें चिलमिया कहते थे वे खेलने वालों की चिलम भरते रहते और खुद भी पीते रहते थे। ये वो दौर था जब गांव में बिजली पानी की आमद होने लगी थी वो जो चिलमिये होते थे वो हारने वाले कि मजाक उड़ाते थे और इधर उधर की पत्तियां देखकर बता देते थे, एक दिन मेरे दादाजी ताश में हार गये और एक चिलमिये ने उनकी मजाक उड़ा दी तो दादाजी ने उसे कह दिया, "तू हमारे खेल में ऐसे क्यों सूखता है जैसे मल्लू के घर पर तुरई।" बस उस दिन से हमारे गांव में हर बेकाम और अभाव वाले के लिए वो कहावत प्रसिद्ध हो गई "ऐसे सूखना जैसे मल्लू के घर पर तुरई सूखती है।"
मल्लू ने कभी तुरई नहीं तोड़ी और न तोड़ने देता था लाठी लेकर सबके पीछे दौड़ता पर मल्लू मन से बुरा नही था गांवों में श्राद्ध में अपने पूर्वजों को खाना खिलाने के लिए आज भी गांवों में तुरई की बेल के पत्तों पर श्रद्धा से श्राद्ध का भोजन कौव्वों को परोसा जाता है और लगभग गांव के हर वर्ग के लोग उसके यहां श्राद्ध के लिए तुरई के पत्ते लेने आते थे खुद मल्लू उसके पत्ते धोकर और तोड़कर रखता था उसे महसूस होता कि ऐसा करके वो रामली को सच्ची श्रद्धांजलि दे रहा हो, उसे लगता सब गाँव वाले रामली का श्राद्ध कर रहे। अब उसे बेटियां भाने लगी थीं, कभी कभार उसकी बेटियां आती उसके लिए नए कपड़े लाती और मिठाई और पकवान खिला कर जाती सबसे छोटी उसे शराब के पैसे भी देकर जाती थी, गाँव में उस वक़्त विम बार जैसी कोई चीज नहीं होती थी, राख और मिट्टी से ही बर्तन मांजे जाते थे, और उन्हें मांजने के लिए गांवों में कोई जोना नहीं होता था और सुखी तुरई की जालीदार परत जोने का काम करती थीं, गांव की बहू बेटियां उससे बर्तन मांजने केलिये सुखी तुरई का फल मांग लाती थी और वो सुखी तुरई इक्कठी करके एक झोले में भरकर रखता था, और सबको दे देता था। पर कभी किसी लड़के और पुरुष के मांगने पर उसे भला बुरा कहता।

एक दिल मल्लू मर गया , कुछ दिनों बाद वो तुरई की बेल सूखने लगी और सब तुरई सुख गई, एक तेज अंधड़ उस सूखी बेल को उड़ा ले गया। पर आज भी मेरे गांव में एक कहावत प्रचलित है, "ऐसे सूखना जैसे मल्लू के घर पर तुरई सूखती है।"

संजय नायक"शिल्प"
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