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नरसय्या
चलो आज उस जगह जहां पर मेरा बचपन बीता था। वहां उस मोहल्ले में ज्यादा तर ब्राह्मण,सिख, तेलुगु रेड्डी,और कुछ दूरी पर झोपड़पट्टियां थीं।इन ब्राह्मण परिवारों की जीविका पूजापाठ से होती थी। बच्चे सारे पढ़ने लगे थे।
एक नरसय्या नानाजी हुआ करते थे। वे लम्बे,दुबले पतले , सांवले रंग के होते थे।सफेद धोती कुर्ता पहन कर काले रंग का वास्कोट और काले रंग की टोपी लगाते थे। एक रेड्डी परिवार के घर के बाहर चबूतरे पर वे सोते, और वहीं सरकारी नल पर अपना नहानाधोना कर लेते।
जब से हमें समझ थी वे बस ऐसे ही रहते। सुबह की आरती पर वे मंदिर पहुंच जाते और शाम की आरती...