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नरसय्या
चलो आज उस जगह जहां पर मेरा बचपन बीता था। वहां उस मोहल्ले में ज्यादा तर ब्राह्मण,सिख, तेलुगु रेड्डी,और कुछ दूरी पर झोपड़पट्टियां थीं।इन ब्राह्मण परिवारों की जीविका पूजापाठ से होती थी। बच्चे सारे पढ़ने लगे थे।
एक नरसय्या नानाजी हुआ करते थे। वे लम्बे,दुबले पतले , सांवले रंग के होते थे।सफेद धोती कुर्ता पहन कर काले रंग का वास्कोट और काले रंग की टोपी लगाते थे। एक रेड्डी परिवार के घर के बाहर चबूतरे पर वे सोते, और वहीं सरकारी नल पर अपना नहानाधोना कर लेते।
जब से हमें समझ थी वे बस ऐसे ही रहते। सुबह की आरती पर वे मंदिर पहुंच जाते और शाम की आरती पर। बाकी दिन भर वे क्या करते कुछ पता न था। जब भी मम्मी उदास होती वे आकर पौराणिक कथाएं सुनाते और समझाते देख बेटा देवी देवताओं से लेकर राजा महाराजों तक किसी का जीवन पूर्ण सुख से नहीं बीता। सभी की जिंदगी में गम आते हैं। हिम्मत से रहना चाहिए।
उनके पास लोग छोटे बच्चों को लेजाते जिस किसी के भी बच्चे जो नजर लगी हों, डर गया हों वे मंत्र पढ़ते और आशीर्वाद देकर भेज देते। रेड्डी परिवार में वे रोज़ घर के मन्दिर में पूजा करते और उन्हीं के घर पर सुबह का भोजन करते। बाद में वे कहां खाते क्या करते किसी को पता न था।
एक अचानक सुबह सुबह घर में बहुत गड़बड़ चल रही थी।मम्मी पापाजी दोनो अलमारी में से पैसे लेकर गए।फिर वे दो तीन घंटे बाद लौटे।नहा धोकर चाय पीने लगे। तभी मम्मी बोलीं चलो अच्छा हुआ नरसाय्या काका का बेटा आगया और अपने हाथों से सब कुछ कर दिया।वरना हम सब मिलकर तो उन्हे लावारिस सा ही संस्कार करते।
रात को अचानक दिल का दौरा पड़ने से नानाजी की मृत्यु उसी चबूतरे पर हुई थीं जहां वे सोया करते थे। खबर जब सारे मोहल्ले मैं फैली तब उनका लड़का वहां आगया और सभी लोग पीछे हट गए क्योंकि पिता का संस्कार करने का हक़ तो पुत्र का ही होता है ना।
मम्मी की बात सुनकर पापाजी कहने लगे क्या बात कर रही हों तुम? जिस बेटे ने अपनी पत्नी की बातों में आकर अपने पिता को घर से निकाल दिया वो कैसा सही बेटा हो सकता। अपना घर परिवार सब कुछ होते हुए भी उस बेचारे नरसाय्य काका को दूसरे के घर का चबुतरा इस्तेमाल करना पड़ा वह भी बुढ़ापे में । कितने सालो से वो वहां रह रहे थे कभी आकर उसने ये नही कहा पिताजी घर चलिए यह घर आपका है।
सही मैं कभी बेटे ने उन्हें घर नहीं बुलाया ना ही कभी भोजन ही कराया और ना ही कभी उन्हे कपड़े दिए। वे बेचारे एक अनाथ की तरह ही गुजर गए। सभी के लिए वे कुछ न कुछ करते थे। आज सारा मोहल्ला रो रहा था। मम्मी` भी सुबह से ही बहुत रो रही थी।


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