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बेतुकी वाहियात लॉजिक
डायरी बेतुकी

( डिजिटल की ऐसी तेसी, आज भी निर्णय लेने के लिए फाइल घूमती है,यानी सौ साल पुराना सिस्टम जो अंग्रेज़ दे गए,हद हो गई
    एक एक अफसर के पास एक डायरी लिपिक होता है,हर प्रस्तावित योजना या छोटी से छोटी चीज़ को मंजूरी मिलती है इन्ही फाइल द्वारा। अगर अफसरों के पांच लेवल हैं तो फाइल दस जगह जाएगी,किसी ने कोई आपत्ति करी तो सोचिये,दो अफसरों ने भी की ,और हर अफसर फाइल को तीन दिन में निपटाये तो एक फाइल निपटाने मे तीस दिन लगेंगे। Sunday आदि निकाल दें तो दो महीने एक फाइल को निपटाने मे,कोई आपत्ति हो गई तो भगवान मालिक है,छ महीने भी लग सकते हैं।
     अगर कोई डायरी लिपिक भी छुट्टी पर है तो जब तक नही आता,फाइल पड़ी रहेगी उसकी टेबल पर।
    किसी की प्रोमोशन हो या कोई मामूली सा भी काम हो तो भी फाइल घूमती है।
     यह तो हुआ आपके फाइल घुमाने की कहानो पर कई बार अफसर टूर पर हैं या नेता जी रैली पर गए हैं या एक से ज्यादा विभाग देख रहे है तो उस फाइल की वाट लगनी तय है,एक बार गई तो साल या आठ महीने लग सकते हैं।
     आपको यह समजाना था कि निर्णय लेने की प्रक्रिया जटिल थी और रहेगी,चाहे हज़ारों कंप्यूटर लगा दिये जाएं। डिजिटल स्वप्न तो स्वप्न ही रहेगा और बैंको आदि से आगे मे काम ठीक कर पाए तो भी गनीमत होगी।
      अब आपको कुछ समझ आया होगा कि दुर्दशा का कारण क्या है,निर्णय लेने को सरल नही बना पाए,सिस्टम की कमज़ोरी जिसे कोई आज भी सुधारने को तैयार नहीं।

किसी बीमारी को भगाना है?फाइल घुमाइये
ऑक्सीजन नही है? ओह फाइल घुमाइये
हॉस्पिटल. रोजगार,शिक्षा क्या क्या कहूँ?
फाइल घुमाइये न!
     देश का यही हाल है आज़ादी के तिहत्र साल के बाद भी।