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मैं, तुम और सिर्फ हम
"सुनो, आज शाम की चाय हमारे साथ पी लेना. बस अब तो यही ख़्वाहिश रह गयी है कि कुछ वक़्त हमारे लिए भी निकाल लो. "
"अम्माँ, आपका हुक्म सिर आँखों पर... आप ऐसे मेरा इन्तेज़ार ना किया करें. मुझे तकलीफ़ होती है."

"अरे बेटा, हम मज़ाक़ कर रहे थे. अल्लाह ऐसी आँखों की ठंडक सी औलादें सभी माँ बाप को दे."
" अच्छा बताएँ शाम की चाय कितने बजे पियेंगी. "
" आज नहीं बेटा.. तुम आराम से अपना सेमीनार निपटा लो.. हमने आज रूबी को चाय पर बुलाया है. आज उसके साथ शाम गुजारेंगे. "

" रूबीss... फिर तो मैं सेमीनार में ही डिनर करके आऊँगा. "
" क्या बात है बेटा.. रूबी से इतना चिढ़ते क्यूँ हो.. इतनी अच्छी लड़की है..इतनी हुनरमंद पूरे खानदान में कोई नहीं है और सूरत ऐसी की बस देखते ही रहो.. हल्के हल्के अंदाज़ में बातचीत करने का तरीका उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देता है.

फिर उसकी फॅमिली में सभी एक से बढ़कर एक पढ़े लिखे हैं और शरीफ है.. मजाल है कि किसी को अपनी इतनी दौलत का ज़रा सा भी घमंड हो. "

" अम्माँ, अगर आप रूबी से मेरी शादी के ख़्वाब देख रहीं है तो अभी इस नींद से जाग जाइए. लाख उस लड़की में लाल टके हो बस वो मेरे टाइप की नहीं है. पता नहीं क्यूँ चिढ़ है मुझे उससे... "
" अच्छा, जाओ तुम ऑफिस जाओ.. इस बात पर बहस फिजूल है. "
" ठीक है अम्माँ, चलता हूँ.. रूबी के घर से जाते ही मैसेज कर दिएगा. "

" हाँ,, हाँ,, कर देंगे.. तुम आजकल के लड़के अक़्ल  के पीछे लठ लिए घूमते हो. "
" कुछ भी कह लें अम्माँ.. लेकिन मैं रूबी के हाथ लगने वाला नहीं हूँ. "
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" सलाम आंटी, कैसी हैं आप? "
" अल्लाह का करम है.. बहुत अहसान है उसका.. माशाल्लाह बड़ी प्यारी लग रही हो.. हल्का नीला रंग भी बहुत खिल रहा है तुम पर.

तुम्हारी बरी खरीदने में ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी. हम तो हर रंग का जोड़ा खरीदेंगे तुम्हारे लिए."
"जी,, अब मैं क्या कहूँ आंटी.. पहले आपका बेटा तो राज़ी हो जाए. मजाल है कि किसी फोन का जवाब दे दे. "

" अरे सुधर जायेगा तुम फ़िक्र ना करो.. बस हमने तय कर लिया है हमारी बहु तुम ही बनोगी.. हम भी देखते हैं यासीन कैसे हमारी बात नहीं मानेगा.अच्छा दिल छोटा ना करो जाओ जल्दी से चाय बनाकर ले आओ.. आज लॉन में बैठते हैं "
" जी आंटी, आप लॉन में चलिए.. मैं चाय बनाकर लाती हूँ. "

" यासीन, अच्छा हुआ तुम जल्दी आ गये.. रूबी को घर छोड़ आओ बेटा.. उसके यहाँ से कोई लेने नहीं आ पायेगा. बहुत देर से घर जाने के लिए परेशान हो रही है. "

" जी, अम्माँ, जैसा आप का हुक्म.. चलिए मोहतरमा "
" आख़िर क्या वजह है जो आप मुझसे बात नहीं करते हैं. मैंने कितने फोन करती हूँ आपको मजाल है जो एक फोन कभी उठाते हो. "

" तुम रास्ते में उतरना चाहती हो या घर पर? तुम्हें समझ क्यूँ नहीं आता है मुझे ऐसी बातों से चिढ़ है..ऐसी मुँहफट और बेबाक लडकियों से नफ़रत होती है मुझे.तुम्हारे लिए अच्छा यही होगा कि मुझसे दूर रहो. अपनी दोस्ती सिर्फ अम्माँ तक ही रखो."
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"इस लड़के का दिमाग़ बिलकुल ठिकाने पर नहीं है.. आने दो इसे आज इसकी ख़बर लेती हूँ अच्छी तरह.. इसकी हिम्मत कैसे हुई तुम्हें इस तरह बातें सुनाने की. "

" जाने दें आंटी, मैं आप दोनों के बीच में किसी भी झगड़े की वजह नहीं बनना चाहती हूँ. मैंने फोन इसीलिए किया था कि छुट्टियाँ तो शुरू हो गयी हैं लेकिन मैं आपके पास रहने नहीं आ सकती हूँ. यासीन को अच्छा नहीं लगेगा. "

" ठीक है बेटा, तुम्हारी मर्ज़ी. लेकिन हम...