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एक पत्र स्वयं को
मैं अर्चना हा मैं स्वयं ही
एक पत्र मेरे स्वयं के लिए क्योंकि इस वक्त मैं बहुत परेशान हूं ,बहुत हारा हुआ और बेचारापन महसूस कर रही हूं ,खुद पर ही दया आ रही हैं खुद से नफ़रत हो रही हैं तो खुद से ही कुछ कहना चाहती हूं की ठीक हैं ना यार नहीं हो रहा कुछ भी सही सब तुमसे नाखुश हैं ठीक हैं
तुम्हारे दुखी होने से व्यर्थ रोने से कुछ नहीं होगा क्योंकि तुम उसे ठीक नहीं कर सकती जो तुम्हारे हाथ में नहीं हैं जो तुम्हारे वश में बिल्कुल भी नहीं हैं।।
तुम अपनो को खुश रखने का प्रयास कर सकती हों मगर उन्हें तुम खुद से दूर जाने से नहीं रोक सकती ,तुम उनके लिए उनसे दूरी बना सकती हो मगर तुम उन्हें प्यार देने के लिए नहीं कह सकती हों
तुम तुम्हारे स्तर पर हो सकता हैं वो कर सकती हो मगर जो तुम्हारे से परे हैं वो नहीं
तुम उनका दिल जीतने का प्रयास कर सकती हो परंतु उनके दिल में निवास नही कर सकती
तुम करो जो भी तुम अच्छा कर सकती हो
मगर उन्हें अच्छा बुरा लग जाए तो दुखी मत हों
तुम अच्छा कर रही हो ये सोच कर खुद से प्रेम करो घिन नहीं क्योंकि घिन और ही बहुत हैं करने वाले
तुम हसो ,मुस्कुराओं और खुद को भोला समझो ना की मूर्ख
और यही कहूंगी की तुम सबको खुश करने के लिए नहीं जन्मी हो तुम्हारा फर्ज़ तुम्हारे स्वयं के प्रति भी हैं
हर शख्स में खामियां हैं तुम में भी हैं स्वीकार करो उन्हें परंतु इसका अर्थ ये कतई नहीं की तुम झकझोर दो हर इंसान को खुश रखने के लिए
और उन खामियों को याद कर कर के खुद को गलत इंसान समझना बंद करो दूसरे तुम्हे गलत कहते ये कम हैं क्या जो तुम खुद भी खुद को नोच रही हो
याद रखो तुमने जानबूझ के कभी अपने मां बाप का दिल नहीं दुखाया हैं तुमने जानबूजकर अपनी बहन के लिए कोई गलत फैसला नहीं लिया हैं तुम अपने प्रेमी से दूर हो क्योंकि वो ज़रूरी था
तुमने कुछ गलत नहीं किया हैं
जो भी परिस्थितियां हैं उनका दोष स्वयं पर मत डालो
वक्त बुरा हैं इसलिए कोई साथ नहीं खड़ा हैं
खुद खुद के साथ डटी रहों एक जिद्दी अड़ियल की तरह तुम्हें तुम्हारी जरूरत हैं अर्चना।।


प्रेम करो खुद से
खुद को तन्हा मत छोड़ो एक पल के लिए भी इस दुनिया की भीड़ में वरना तुम खुद को खो दोगी..........और फिर शायद कभी खुद को ढूंढ भी नहीं पाओगी......।।


अर्चना ।।

© ak.shayar