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महा बलिदान
सन 1730 के सितंबर महीने की बात है ।जोधपुर महाराजा अभयसिंहजी महाराज दीवाने खास में बैठे ,अपने खास सरदारों से मेहरान गढ़ (जोधपुर के दुर्ग का नाम) के मरमत के बारे में सलाह सूत कर रहे थे। मरमत की सामग्री ,गढ़ में आ चुकी थी। तब सीमेंट की जगह चूना काम में लिया जाता था। मारवाड़ प्रांत में बोरुंदा के इलाके में चूना प्रचुर मात्रा में उच्च गुणवत्ता का मिल गया।अब चूना को पकाने के लिए ईंधन की जरूरत थी। महाराजा अभयसिंहजी ने,ईंधन की व्यवस्था करने के लिए, राजमंत्री गिरधरदास भंडारी को हुक्म दिया। दूसरे दिन राजमंत्री ईंधन की व्यवस्था के लिए अपने लाव लश्कर के साथ निकल पड़े। उन्होंने पाया की जोधपुर शहर से पूर्व दिशा में 24 किलोमीटर दूर खेजड़ी के वृक्षों का सघन वन था।
तब से लगभग दो सो बरस पहले, जांभोजी नाम के संत महापुरुष ने बीकानेर जिले के नोखा तहसील के समराथल धोरा नमक स्थान पर एक शुद्ध शाकाहारी अहिंसक संप्रदाय को स्थापित किया था। उनके संप्रदाय का काम, भगवान विष्णु की पूजा करना,पेड़ पौधों को लगाना, व उनकी रक्षा करना,जंगली जानवरों की रक्षा करना आदि मुख्य थे। जांभो जी द्वारा प्रतिपादित संप्रदाय के लोग, भगवान विष्णू के अनन्य उपासक थे, अतः उन्हें विष्णोई कहा जाने लगा।कालांतर में यही विष्णोई संप्रदाय,एक जाति में बदल गई,और विष्णोई शब्द अपभ्रंश होते होते बिश्नोई बन गया।इनका काम पेड़ व,जंगली जानवरों की रक्षा करना,भगवान विष्णु की उपासना करना, पशुपालन,किसानी करना था। विश्नोई संप्रदाय की आबादी के आस पास जंगली जानवर यथा बंदर,नीलगाय हिरण स्वच्छंद विचरण करते थे एवम, जाल नीम,खेजड़ी,कीकर , केर आदि पेड़ों के सघन झाड़ियां थी।पेड़ को काटना ,उनके इलाके में निषेध था।उसी संप्रदाय के लोगों की बस्ती के आसपास खेजड़ी के पेड़ों की सघन झाड़ी थी। जोधपुर राज्य के महामंत्री गिरधर दास भंडारी ने वहां उगे खेजड़ी के पेड़ों को काटने का हुकम दिया। शाही मजदूरों के कुल्हड़ों की आवाज बिश्नोई संप्रदाय की अमृता देवी नामक महिला ने सुनी।अपनी 12 वर्षीय बेटी रतनी और 8 वर्षीया बेटी भागू को लेकर,घटना स्थल पर पहुंच गई।और महामंत्री गिरधरदास भंडारी से पेड़ों को नहीं काटने की प्रार्थना की। सत्ता के मद में अंधे महामंत्री ने उसकी एक बात भी नही सुनी।जब विनय व्यर्थ गया,तो गुस्से में आकर अपनी दो बेटियों सहित पेड़ से चिपक गई,और कहा कि इन पेड़ों को काटने से पहले तुम्हे हमारी लाश के ऊपर से गुजरना होगा। महामंत्री ने समझाया,डराया धमकाया लेकिन अमृता देवी टस से मस नहीं हुई। तैश में आकर महामंत्री ने काटने का हुकम दे दिया। मां और दो बेटियां वहीं खेजड़ी से चिपकी हुई काट दी गई। यह घटना पूरे संप्रदाय में आग की तरह फेल गई। उनके 84 गांवों से लोग इक्कठा हो गए और पेड़ों से चिपक गए। राजसत्ता ने हर चिपकने वाले आदमी औरत बच्चों को काट दिया।यह सामूहिक वध तीन दिन तक चला।इन तीन दिनों में तीन सो तिरेसठ लोग काट दिए गए। तीन दिन बाद जब जोधपुर महाराजा अभयसिंह जी को इस घटना का पता चला तो ,उन्होंने यह भीषण नर संहार रुकवाया। महाराजा स्वयं पैदल चल कर घटना स्थल पर पहुंचे। उस जगह के गांव का नाम खेजड़ली रखा।जो आज भी आबाद है। महाराज ने उस संप्रदाय को ताम्रपत्र लिख कर दिया कि भविष्य में जहां जहां बिश्नोई संप्रदाय के लोगों की बस्ती होगी,वहां पर पेड़ काटना और शिकार करना निषेध रहेगा।
समूचे विश्व में पेड़ को बचाने के लिए 363 लोगों के बलिदान की घटना अकेली है। आज भी उस जगह पर प्रतिवर्ष मेला भरता है,जिसमे हजारों श्रद्धालु पहुंच कर 363 वृक्ष वीरों को श्रद्धांजलि अर्पित करते है।