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नशे की रात ढल गयी-17
(17) .. एकबार पिता जी के एक शिव-भक्त मित्र ने उन्हें एक उपाय सुझाया कि पुत्र-प्राप्ति के लिए अपनी व्यथा एक पत्र में लिखकर उसे शिवजी के नाम से मन्दिर में छोड़ दें..और एकदिन बाबूजी ने महाराजगंज के प्राचीन शिवालय में शिव जी के नाम से एक पत्र प्रेषित कर दिया.. इसतरह बहुत मन्नतों के बाद मेरा जन्म हुआ । मेरे इतने सात्विक नामकरण का रहस्य भी शायद इसी घटना से जुड़ा रहा होगा । अब इस कहानी में कितनी सच्चाई है और कितनी मनगढ़ंतता-- मुझे मालूम नहीं, लेकिन इतना सच तो जरूर है कि सारे देवताओं में मेरे प्रिय देवता बेशक महादेव ही रहे हैं। महादेव के स्वभाव का थोड़ा सा अंश मेरे भीतर भी मौजूद है । मैं भी बहुत जल्द क्रोधित होकर शांत हो जाता हूँ । बाबूजी की पाबंदियों से लेकर पत्नी की हर तानाशाही को मैंने इसी स्वभाव से अबतक झेला है ।मेरा चरित्र भी महादेव की तरह विरोधाभासों से भरा रहा है। मेरे स्वभाव में सात्विक और तामसी-दोनों प्रवृत्तियाँ एक साथ विद्यमान रहीं हैं । मेरे भीतर गृहस्थ और औघड़ दोनों का वास है । और जहाँ तक मदिरा का सवाल है,महादेव से बड़ा मद्यप्रेमी इस सृष्टि में कोई दूसरा खोजने से भी नहीं मिलेगा । हालाॅकि मुझसे बड़ी तीन बहनें और भी थीं लेकिन कुल-दीपक की हैसियत में तो सिर्फ और सिर्फ मैं ही था । जबतक माई-बाबूजी जीवित रहे मुझे अपनी बढती हुई उम्र का एहसास तक नहीं होने दिया। वे हमेशा मुझे एक नन्हा-सा बच्चा ही समझते रहे । उन्हें लगता कि मैं अब भी एक अबोध बालक-जैसा हूँ जो किसी मेले-ठेले में भुला सकता है । यहाँ तक कि मेरी नौकरी हो गयी, शादी हो गयी और बच्चे भी हो गये लेकिन मेरी हैसियत नहीं बदली । दूर की किसी भी यात्रा पर किसी जरूरी काम से मुझे जब भी जाना होता ,किसी को मेरे साथ पिछलग्गु होना पड़ता । एकबार पत्नी के साथ ट्रेन में सफर कर रहा था । गर्मियों के दिन थे और प्यास लगी हुई थी । एक स्टेशन पर ट्रेन रूकी तो पत्नी ने ट्रेन से उतरकर पानी लाने के लिए कहा लेकिन फिर अचानक कुछ सोचकर मना कर दिया । मैंने जब कारण पूछा तो बताया कि बाबूजी ने चलते समय सख्त हिदायत दी थी कि किसी भी स्टेशन पर मुझे उतरने नहीं देना है । नौकरी में आने के बाद मुझे मोटरसाइकिल खरीदने का मन हुआ लेकिन बाबूजी अड़ गये कि घर में या तो मोटरसाइकिल रहेगी या खुद वह । सरस्वती पूजा के अवसर पर मूर्ति-विसर्जन में मेरे जाने पर पाबंदी थी कि नदी में डूबने का खतरा रहता है । घर में माँ को गैस पर कभी खाना बनाने की परमिशन नहीं मिली ।कारण -उससे आग लगने का खतरा था । लेकिन पत्नी ने जब किचेन की कमान सम्भाली तो उनकी एक नहीं चलने दी ।
मेरे उपर इतनी सारी पाबंदियों का नतीजा यह हुआ कि मैं जिन्दगी की जंग में एक कमजोर प्यादा बनकर रह गया । जिन्दगी की कठिन और विषम परिस्थितियों में मेरा आत्मविश्वास डगमगाने सा लगता ।पता नहीं किस वजह से बाबूजी को मेरी जिन्दगी पर हर वक्त मौत का साया मँडराता नजर आता ।उन्हें लगता कि अगर मुझे कुछ हो गया तो वंश का इकलौता चिराग हमेशा हमेशा के लिए बुझ जायेगा ।
मेरी जिन्दगी में पत्नी का आगमन कई मायनों में क्रांतिकारी साबित हुआ । उनके आते ही घर का माहौल बदलने लगा । लकड़ी पर खाना बनना बंद हो गया । मेरे लल्लूपन की सरेआम खिल्लियां उड़ने लगीं । बाबूजी का दबदबा घटने लगा । मैं अब वह सबकुछ करने लगा जिसे पहले करने की मनाही थी ।बस्तुत: यह दौर मेरी जिन्दगी में कई बदलाव लेकर आया । एक तो यह कि बच्चों के जन्म होने के बाद बाबूजी का सारा ध्यान मुझसे हटकर बच्चों पर शिफ्ट हो गया । अब उनकी सारी डाॅट-डपट और रोक-टोक का शिकार बच्चे होने लगे । मैंने पहलीबार खुली हवा में साँस ली और आजादी के एहसास से भर उठा ।ऐन इसी वक्त मेरे भीतर एक सैलाब उठा और वहाँ से कुछ कविताएँ फुट पड़ीं..

( क्रमशः )