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कुर्सी की नक्काशी , हमारा प्यारा इतिहास
#कालीकुर्सी
भईया इस कुर्सी की क्या कीमत है बताना जरा। किस कुर्सी की, इसकी? पास पड़ी कुर्सी के तरफ़ इशारा करते हुए, नंद ने कहा। नंद इस दुकान में काम करने वाला एक मुलाज़िम है। तभी सरिता ने कहा नही भईया ये वाली नहीं, ये वाली तो मेरे बाबू को पसंद ही नहीं आएगी। उसकी पसंदीदा रंग काला है, मुझे वो वाली कुर्सी चाहिए। दूर पड़े शीशे के उस पार पड़ी आलीशान काली कुर्सी, किसी राजा की सिंहासन सी जान पड़ रही थी...
सरिता ~ भैया कुर्सी किसी खास लकड़ी से बनी लगती है !
नंद ~ हां ! थोड़ा सोच कर ।
सरिता ~ कुर्सी की नक्काशी तो देख कर लगता है ,किसी महाराज के खास मुजालिम ने उनके लिए बनाया था !
नंद ~ कुर्सी तो काफी पुरानी है , खैर मुझे ज्यादा पता नही !
सरिता ~ कुर्सी लेकर घर के रवाना हो जाती है।

सरिता सोच में पड़ी थी हजारों सालों , पहले हमारे भारत के व्यापार ,,अलग अलग देशों में होते थे ,इटली ,स्पेन , पुर्तगाल, फ्रांस,लेकिन
यूरोप के रहने वाले लोगो के भारत को उपनिवेश बना कर भारत को खोखला कर दिए है !
हमारा मयूर सिंहासन ,और बेशकीमती कोहिनूर हीरा भी आज भारत का न रहा !

जर्मन इतिहासकारों के अनुसार भारत और चीन , एक हजार साल तक पूरे भारत पर आर्थिक रूप से , छाए हुए थे ,इसलिए नही की ये लुटेरे थे इसलिए क्योंकि इनके पास ,आर्थिक समृद्धि थी ,भारत के व्यापार में नक्काशी बनी वस्तु आज उतनी ऊंचे दर्जे पर नहीं है जितनी वो , पंद्रहवीं और , बारहवी शताब्दी में थी ।

यूरोप के किसी किसी देश में ,भारत के बने वस्तुओ को खरीदने पर रोक लगा दिया ,क्योंकि लोग खुद के देश का सामान न लेकर भारत का सामान पसंद करते थे !

कहा जाता है की ,एक औरत पर 200 पाउंड का जुर्माना भी लगा दिया गया था ,क्योंकि उसके पास भारतीय रूमाल था ,जो की गैर कानूनी था !
और अगर भारत ब्रिटिश का गुलाम न होता तो, हम पूरे विश्व पर राज करते ।

आह! हकीकत है ,,, जो इतिहास बन गया है ,,अब और क्या कह सकते है!

सरिता अपने घर पहुंच गई अब ।
इतिहास है , सत्य है जो कभी बदला नहीं जा
सकता है !



© @खामोश अल्फाज़ ©A.k