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पराई आग पर रोटी नही बनाऊंगा
में भीग जाउंगा छतरी नही बनाऊंगा

अगर खुदा ने बनाने का इख्तियार दिया
अलम बनाऊंगा बरछी नही बनाऊंगा

फरेब दे कर तेरा जिस्म जीत लू लेकीन
में पेड़ काटकर कश्ती नहीं बनाऊंगा

गली से कोई भी गुजरे तो चोक उठता हूं
नए मकान में खिड़की नही बनाऊंगा

तुम्हे पता तो चले बे जुबान का दुःख
में अब चिराग़ की लॉ ही नही बनाऊंगा

में एक कहानी लिखूंगा अपनी सरवत पर
और इस मे रेल की पटरी नही बनाऊंगा

करिश्मा साज़ी ए हुस्न ए अजल अरे तोबा
मेरा ही आईना मुझे दिखा कर लूट लिया
में अब कभी तेरी सूरत भी दिल में नही बनाऊंगा