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क्योंकि आप किसी का बुरा नहीं चाहतें
किंतु आपके होने से यदि कुछ भला नहीं हों रहा,
तो बैहतर हैं उस स्थान को छोड़ देना।

जब लोगों में समझ की कमी हों
के उनके actions(unstable double face actions) किस तरह से किसी को चोट पहुतचाते हैं, तब आपको अपनी समझ को ही थोड़ा बदलना पड़ता हैं।
मजबूरी में ही सही
किंतु यदि किसी को यदि यह ना पता चले
के वह क्या अनुचित कर रहा हैं,
तब आपको कोई उचित कदम उठाना ही पड़ता हैं।
चाहें वह निर्णय आपके लिए कितना ही मुश्किल क्यों ना हो
भले ही दिल पर पत्थर रखकर ही सही
मग़र वह मुश्किल कदम आपको उठाने ही पड़ते हैं
क्योंकि ये बंदगी थी हमारी
बंदिनी नहीं थे किसी के हम,
के जब जैसा मर्ज़ी आएगा..
कोई हमको कैसा भी treat करेगा....
और आपको अपने role ka पता ही ना हो किसी के जीवन में....
किंतु किसी की गलती का यदि उसे अहसास ना हो तो आप उसे उसकी गलती का एहसास नहीं करा सकते।
इंसान को लग सकता हैं?
मेरी क्या ग़लती...!?
किंतु यदि किसी को अपने जिम्मेदारियों और दाइत्व का बोध ही ना हो...
तो उसे आप उसकी क्या ग़लती बताते...
और यदि जो किसी रिश्तें में वे अपनी ज़िम्मेदारी क्या हैं?
इसकी समझ ही ना रखता हों उसे आप क्या समझायेंगे.
जो ना बात सुनने को तैयार हो न करने को...
महज़ बचकानी हरकतों में चीज़ों को उलझाए रखना चाहें..
क्योंकि जिसे अपनी ज़िम्मेदारी की समझ होती
तो वे ऐसा करते ही नहीं...
क्योंकि इन जिम्मेदारियों को निभाने के लिए ना अलग से कोई time invest करना पड़ता हैं..
न पैसा न energy...
महज़ एक sense होता हैं मुझे क्या करना चाहिए क्या नहीं..
और यहाँ आप किसी और मजबूरी का बहाना भी नहीं दे सकते...
और यदि आप वाकई किसी से प्यार करते हैं बेवजह आप कोई ऐसा काम ना करेंगे जो उसे पसंद ना हो उसे चोट पहुचाती हों या उसके आतम सम्मान को चोट पहुचाती हों।
21.4.24