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रात भर याद तेरी हाल बुरा करती है
इन सितारों में तेरा अक्स बुना करती है
देख चेहरा ये नहीं ग़म की नुमाइश करता
एक झूठी सी हँसी रोज़ सजा करती है
भाँप लेती है मगर तेरी नज़र ग़म मेरा
नम निगाहों से सवालात किया करती है
वो जहाँ प्यार न इज़्ज़त ही बची रिश्तों में
ज़िंदगी जंग का मैदान हुआ करती है
नेक नीयत और रहम दिल नहीं सब को हासिल
है ये दौलत जो शरीफों को मिला करती है
अलविदा कह जो गए लौट के ना आएँगे
शम्आ उम्मीद की पर रोज़ जला करती है
#दीप
#याद
#नुमाइश
#ग़ज़ल
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