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*** ग़ज़ल ***
*** दरीचे ***

" गिले-शिकवे तमाम रखेंगे ,
मुहब्बत के दरीचे तमाम रखेंगे ,
फिर तुझसे कैसे और क्या मिला जाये ,
बात जो भी फिर गिला - शिकवा का क्या किया जाये ,
यूं रोज़ आयेदिन तुमसे सामना होता ही रहेगा फिर किसी ना किसी बहाने ,
मुहब्बत की पुर-ख़ुलूस मुहब्बत ही रहेगा ,
दिल को दिलासा ना देते तो क्या देते ,
इस एवज में दिल को तुझे मुहब्बत करने से सुधार तो नहीं देते ,
यूं देखना भी फिर देखना ही हैं यूं तसव्वुर के ख्यालों से ,
फिर किसी और की तस्बीर लगा तो नहीं देते ,
जो है सो है फिर किसी और को पनाह तो नहीं देते ,
दिल फिर इस इल्म से गवारा क्या कर लें ,
तुझे छोड़ के फिर से इश्क़-मुहब्बत दुबारा कर लें . "

--- रबिन्द्र राम

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#इल्म #गवारा #इश्क़ #मुहब्बत