...

2 Reads

और फ़िर इल्ज़ाम आप बहु को देते हो
व स्त्री को देते हो जो आपके बेटे के लिए अपना घर,
माँ बाप सब छोड़ आई
उसको आपको सिर आँखों में रखना चाहिए
क्योंकि उसके त्याग की आप कभी कीमत नहीं अदा कर सकते।
और यही कारण हैं एक स्त्री को अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए जगत छोड़ना नहीं पड़ता
उसका जीवन ही प्रतिपल त्याग हैं!!
जनम से वृद्धा तक
त्याग ही त्याग हैं
वह संसार को ही सही से निभा ले।
बस यहीं वो मुक्त हैं।
किंतु दिक़्क़त यह की सबसे अधिक मोह व आसक्ति में
स्त्री ही पड़ जाती हैं
और एक स्त्री की सबसे बड़ी आसक्ति एवम मोह उसकी अपनी ही संतान के प्रति होती हैं, ख़ास जब वह लड़का हो।
और उसी मोह और आसक्ति में वह बहुत कुछ अन्यायपूर्ण कर जाती हैं।
और स्त्री की गरिमा और महिमा को वह कभी उपलब्ध नहीं हो पाती हैं।
वरना वही बहु जब सास बनती हैं तो उसकी ममता सारी कहां खो जाती हैं!?
प्रेम पाने के लिए प्रथम प्रेम आपको देना तो होगा
आप बहु हो या सास या कोई दूसरा भी रिश्ता
आप पहले प्रेम देके तो देखो
निश्चित ही शुरुवात में कठिनाई आएगी
क्योंकि यह जनम के रिश्तें नहीं हाथ से इसकी बुनाई करनी पड़ती हैं
आप चेष्ठा करके तो देखो
फ़िर भी यदि चीज़ें खूबसूरत नहीं होती
फ़िर दूसरे का कर्म दूसरा देख लेगा।
किंतु जिस रिश्तें में आपने ख़ुद कुछ नहीं डाला
और उसके फलने फूलने की कैसे आशा रख सकते हो
रिश्ता कोई भी हो यह द्विपक्षीय होता हैं
महज़ एक के समझदार होने से कुछ न होगा
दोनों का equal प्रयत्न व contribution इसमें चाहिए होता हैं रिश्ता कोई भी हो
अन्यथा सास हो की बहु हो एक दूसरे को ही दोषारोप करते रह जाएंगे
सही कौन ग़लत कौन इसका हिसाब किताब ना कर पाएंगे।
किसी भी रिश्तें में स्वीकार और छमा सबसे बड़ी कड़ी हैं,
यह न हो तो रिश्ता कभी टिक नहीं सकता
क्यों माँ बेटी/ बेटे व भाई बहन में झगड़े नहीं होते क्या?
फ़िर याद भी रहता हैं क्या कब झगड़े थे? 😊
अंतर महज़ इतना के वहां स्वीकार और छमा स्वतः ही हैं 😊।
25.9.2024
4.47pm
#Diary📕