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संगमरमर के महलों में,
ढूंढने क्या रोज आते हो,
लिए लाद बोझ उम्मीदों का,
झुक कहा आ जाते हो।
और मिले रक्त के बदले, चंद सिक्कों को,
समर्पित कहा कर आते हो।
घने अंधकार में, जोड़ हाथ को,
प्रकाश से वास्ता, होता नहीं है।
खोल उन हाथों को,
एक दीपक जलाना पड़ता है ~२ ।।
©AshR