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उनसे जो तकरार हुई,
ताउम्र के लिए हुईं।
उनकी बातों से जो खंजर चुभे,
वो सीधे दिल पे लगे।
वो जान के भी सब करते गए,
दिल को लहुलुहान करते गए।
हम सहते सहते थक गये,
वो हमें समझना भूल गए।
हम जान नहीं जंजाल बने,
वो जान किसी और को बनाते गये।
जब जान कोई और ही थी,
फिर हमसे क्यों नाता जोड़ते गये।
हम फुर्सत में याद रहे,
वो हरदम उनकी साथी बनी।
वो सच में उनकी रानी थी।
जो हकीकत हमें समझनी थी,
वो बता के हमको जतलाते।
हम फिर क्यों उनसे ताल्लुकात रखे।
हम मर्ज नहीं जब तुम्हारे,
तो हम क्यों गमे दवा बने।
तुम रहो हाकीकत के साथ अपनी,
हम अपने में ही खुशनुमा रहें।
अनु
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