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चिन्ही - चिन्ही सी कुछ चाहते,
धन- दौलत अंबार नहीं चाहते;
कुछ चाहत है नहीं कुछ चुराते,
आहत हैं, पर कुछ नहीं बताते।
सताए हुए हैं पर हम न सताते,
स्वयं हो फंसे धंसते चले जाते;
वे ओरों को कभी नहीं फंसाते,
शीशे के घर में
रहने वाले पत्थर नहीं चलाते।
ह्रदय स्नेह ले प्रेम गीत सुनाते,
प्रेम बीज बो मित्र भाव उगाते;
मित्र उपवन प्रेम पुष्प सजाते,
डाल नीड़ बैठ प्रेम- गीत गाते।