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कपड़ो से लबालब भरे हुए कपाट को
खोलते हुए...
तुम्हारी यादें एक कोने में दबा दी है..!!!

जिनमे है तुम्हारा इत्र लगा हुआ रुमाल_
एक पेन जो मैने तुमसे जान बूझकर मांगा था...
तुम्हारी शर्ट का एक बटन _जो किसी के साथ हुए तुम्हारे झगड़े में टूट गया था...
और वो तुम्हारा झूठा चाय का कप_
जो मैने तुम्हे भनक लगे बिना ही अपने पास रख लिया था...!!!

जिनपर मेरी नज़रे तो जाति है
पर मैं उन्हे अनदेखा कर देती हू..
क्यों की वो स्मृतियां अब
नवजीवन प्राप्त करती है नही...
और तुम्हे भूलने के इस कलाहोल में
तुम्हारी यादों को और बढ़ावा देती है..!!!

अब तुम कहोगे ये वस्तुएं इनका क्या..!!!
तो इन्हे रहने तो कपाट के उस हिस्से में_
कभी "कभी मेरी बेवजह की मुसकुराहट बन जाती है...!!!

© A.subhash

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