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गुमान टुटते... जब धड़ाम से गिरोगे अफ़्लाक से ज़मीं पर
क्या इश्क क्या मुहब्बत तब खुदा की जुबानी याद आयेगी
बड़े इश्तियाक से जलाया था ना तुमने तस्वीर-ए- अलम
वीरान राहों में चलते थामें हाथों की निशानी याद आयेगी
यकीनन! अभी चिर के फेंक दोगे उसके सभी खतों को
मगर तन्हा-सबब तुम्हें उसकी ही यादें पुरानी याद आयेगी
सौ दवा-खानों के बाद भी... गर नासाज सी लगे तबियत
गम भुलाने बिल-आख़िर साकी-ए-मयखानी याद आयेगी
मादूम तो होगा ही रूह ज़ेहन से ज़ईफ़ी में अम्न-ओ-चैन
मुस्काओगे हल्के से जब किस्सा-ए-जवानी याद आयेगी
और मुलम्मे की कब्रगाह जब तुम्हें दे न पाए निंद, ए नूर'
फिर से वह बचपन वही दादी की कहानी_ याद आयेगी
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