...

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जिस दिन ये सब खत्म हो जाएगा
पिछे कुछ बाकी नही रहेगा...
तब हम फिर मिलेंगे...
जहा आंखो को मिचती हुई रोशनी होगी
और सदियों का अंधेरा पार कर के हम उस रोशनी मे आमने सामने खड़े होंगे..!!!
पता है सब से पहले मैं क्या करूंगी,
तुम्हे सबसे पहले मैं अपने गले से लगा लूंगी,
और अपनी आंखों से कोई आंसू नहीं वो सारी कविताएं बहा दूंगी जिनपर सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा हक था...!!!
फिर चाहे वो वक्त वही रुक ही क्यों न जाए
मैं तुम्हे तब तक मुक्त नहीं करूंगी
जब तक मैं खुद रिक्त ना हो जाऊ...!!!

a. subhash

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