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न तो कामिल न ही तामीर में हैं
हमारे ख़्वाब अभी ज़ंजीर में हैं
अभी कुछ मश्क़ बाक़ी है मुसव्विर
अभी कुछ ख़ामियाँ तस्वीर में हैं
तेरी ज़ुल्फ़ों में जितने ख़म हैं उनसे
ज़ियादा तो मेरी तक़दीर में हैं
वसीयत में बताओ क्या लिखूँ मैं
तजुर्बे ही मेरी जागीर में हैं
क़वाफ़ी जी़स्त के निभने न देंगे
जो नुक़्ते बख़्त की तहरीर में हैं
कामिल-पूर्ण
तामीर-बनावट
मश्क- मेहनत
मुसव्विर-चित्रकार
ख़म- घुमाव, टेढ़ापन
बख़्त -भाग्य
तहरीर- लिखावट
@मनमौजी