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कोई पढ़ लेता है कोरे काग़ज़ भी, कोई लिखी किताब नहीं पढ़ पाता,
कोई समझ लेता है ज़ज्बात, कोई बिखरे हालात समझ नहीं पाता।

चेतन घणावत स.मा.
साखी साहित्यिक मंच, राजस्थान