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तप्त मन को झमझमाझम बारिशों में भींगने की चाहतें थी
जब बारिशों ने छनकना शुरू किया तो मन अनचाहे ही सिकुड़ने लगा…
न किसी का इंतज़ार था और ना ही मुझे कोई पुकारने वाला फिरभी मन उदास था…
स्वतंत्र मोर जैसे पंख फैलाना भूल गया था !

कल सारी रात पानी बरसता रहा,,
उसकी याद सीने से लगाए…अचानक हंसी का फ़वारा छूट गया हृदय में हुक उठती आँखों में खारे नीर भर असमय ही उसे बरसने को मजबूर कर देती है,,
या यूँ कहिए सावन - भादो आंखो मे ही बरसती है,,✨️☘️🌟