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आग भी हूँ, पानी भी हूँ, तूफ़ाँ भी हूँ और साहिल भी हूँ,
इस इश्क़ की दुनिया में, मैं हर मंज़िल का हासिल भी हूँ।

हर वक्त मेरे दिल में तपिश है क्योंकि जलती हुई शमा हूँ
तेरी यादों की बारिश में, मैं भीगी हुई मासूम क़ातिल भी हूँ।

तेरी याद के तूफानों में, मैं सुलगता दहकता हुआ शोला हूँ
सर्द सीले लम्हों में तेरा ख़याल, मैं राहत की मंजिल भी हूँ।

मैं तेरे आंखों से अश्कों सा,पानी की तरह सदा बहता हूँ
आग हूँ इश्क की बुझती नहीं, तेरी चाहत का हासिल भी हूँ।

ख़ामोशी की इस आग में चुपचाप खामोश सी जलती हूँ,
तेरी हँसी की ठंडक से महकता साहिल-ए-नजात भी हूँ।