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" रक्ष :इति राक्षस: "
समाज का रक्षक बनो।
सही सुन रहे हैं आप, "राक्षस" ना तो यह शब्द बुरा है और ना ही इंसान।
राक्षस संस्कृति कि स्थापना करने वाले, दैत्य सम्राट महान राजा बलि का वंशज महाराजा लंकापति रावण एक अद्भुत योद्धा थे। वो महान इसलिए थे, क्योंकि उनका प्रथम और अंतिम ध्येय एक ही था, अपने समाज के हितों की रक्षा करना और नयी संरचना करना।
रामायण किताब चाहे कितना भी झूठ फैलाएं पर सच को कोई छुपा नहीं सकता।
महाराज रावण का इसलिए विरोध किया गया था, क्योंकि उन्होंने नयी संरचना की थी। नयी संस्कृति की स्थापना की थी। उस समय महान सम्राट बलि के पतन के बाद दैत्य वंश बिखर गया था।आप सोच सकते हैं खुद रावण भी संकरित जन्मे हुए है। कितना ज्यादा व्यभिचार था। इसी पाप को रोकने के लिए "राक्षस" संस्कृति बनाई।

"लंकापति रावण" देखो शब्द में ही सबकुछ है । जैसे हमारा राष्ट्रपति होता है वैसे ही लंकापति है।
मतलब लंका पिता। और सब जानते हैं लंका एक राष्ट्र है। और रामायण में यह झूठ कहा गया है कि रावण त्रैलोक्याधिपति था। महाराज रावण ने हमेशा ही बुराई का विरोध किया है। स्त्री जाति का हमेशा ही सम्मान किया है।
इंद्र को इसलिए सजा दिया, क्योंकि इंद्र सोमरस यानि कि दारू पीकर स्त्रियां (अप्सराएं) को मनोरंजन के लिए दरबार में नचाया करता था।
सीता को अपने साथ लंका लेकर गये, क्योंकि उनकी बहन शूर्पणखा का नाक काटकर स्त्री जाति का अपमान किया था।
थोड़ा सोचो अगर राम पुरुषोत्तम था तो उसके राज्य में खुद उसके भाई ने एक स्त्री की नाक काटी थी। रामराज्य में भी स्त्रीयों पर अत्याचार होते थे।तो राम पुरुषोत्तम कैसा?
इसके विपरित, महाराज रावण ने सीता को कभी हानि नहीं पहुंचाई। तो रावण महान ही हुएं ना!
विभीषण जैसे गद्दारों ने, सत्ता के लालच में दुश्मनों का साथ देकर छल कपट से महाराज रावण की हत्या की है।
रावण के महान कार्यों को छुपाकर उन्हें बदनाम करने की।राक्षस संस्कृति को मिटाने की कोशिश की गई है।
यह आज के इतिहासकारों का संशोधन है !!!