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अपनों को खो देने का डर, हर बार लगता था,
दोस्तों के बग़ैर मुझे, फूल भी ख़ार लगता था,
क़ैदी बन पेश हूँ आज, किसी के दरबार में मैं,
कभी मेरी ही दहलीज़ पर, दरबार लगता था।
#मानव_दास_मद✍️
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अपनों को खो देने का डर, हर बार लगता था,
दोस्तों के बग़ैर मुझे, फूल भी ख़ार लगता था,
क़ैदी बन पेश हूँ आज, किसी के दरबार में मैं,
कभी मेरी ही दहलीज़ पर, दरबार लगता था।
#मानव_दास_मद✍️