...

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जब जल की धारा लहरा कर बहती है निरंतर,
तब नीर प्राण चेतना बूंदों में करती है, मंथन;
सूर्य स्वर्णिम आरुषि लहरों पर करती कीर्तन,
हर हर बहती नदी संगीत तन मन करे स्पंदन।