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#VoiceInside
चढ़ी है देह
परदेह की सवारी है
या कली कांटे में फंसी है
या घुपी पुष्प पर कटारी है
हिले ताकत जो हलके से
तो पूरी रात भारी है
कभी उठती कभी बैठी
बारी- फिर से बारी है
पलों की शीघ्रता छलने
टिकी लम्बी तैयारी है
क्षर पे क्षर अपरिहार्य है
दोनों शस्त्र दोधारी है
नए तवे पर हुई है लाल
लाज सेंक कर उतारी है
निगला है अंगारा बुझाने
निकली प्यास चिंगारी है
रुक रुक के लय तोड़ो नहीं
अनुभव मेरा व्यभिचारी है
मेरी चाहत में इसके बाद
अभी दूसरी भी पारी है