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है इक लड़की जिसे मैं उससे भी ज़्यादा जनता हूं,
मैं उसकी उदासियां, उसकी आंखों से पहचानता हूं।

तिरछी निगाहें उसकी परेशानी का इशारा है,
मैं कहता हूं तू बस खुश रह, ये वक्त हमारा है।

जब करता हूं जाने की बात मैं, वो मुरझा सी जाती है,
नज़ाकत-ए-वक्त कुबूल करता हूं, याद मुझे भी आती है।

जो वक्त न दूं उसे तो सारा ज़माना सर पे उठा लेती है,
जनता हूं सुकून हूं मैं उसका, उसकी नज़रें बता देती है।

मसला मेरा हो तो समझदारी मानो गुमशुदा होती है,
मुझसे बातों के लिए रोज़ाना नींद तक कुर्बान होती है।

जो हो जाऊं तल्ख़ मैं ज़रा भी तो वो आंसू बहती है,
मुझसे लड़ती नहीं, चुप्पी से अपनी नाराज़गी जताती है।

वो खिलखिलाकर जब भी हंसी, मैंने समझा हर बार,
कोई उम्मीद नहीं है उसे मुझसे, चाहिए तो सिर्फ़ प्यार।

मालूम है मुझे उसकी सारी दुनिया मेरे इर्द-गिर्द चलती है,
जो किसी से न संभली आज तक वो मुझसे संभालती है।

।। अंदाज़-ए-मोहतरमा ।।