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#बताओ नं कान्हा….

कान्हा……
प्रेम की परिभाषा कैसे व्यक्त करें….
वो मुस्काती है….वो चिढाती है,
वो आँखों से ग़ुस्सा भी दिखाती है….वो आँखों को मिचकर अपने दोनो लबों से एक लंबा चुंबन देती है,
वो अपनी लंबी जीभ को अपने दायें गाल की और टेढा निकालकर नयनों को उसी दिशा में घुमाकर ॲऽऽऽऽऽ करके बंदर जैसी हरकत करती है….कभी गालों को चुमती है,
वो कभी खडूस कहती है…. तो कभी बुद्धू भी,
वो कभी बालों में तेल लगाती है….कभी बालों को नोंचती भी है,
वो कभी नाक को जोर से खिंचती है….तो कभी उस पर टपली मारती है,
वो हाथ में हाथ पकडे हुए साहील की रेत पर चलती है….वो गुस्से में पैरों की उँगलियों को मरोडती है,
वो निश्चिंत होकर गले में पड जाती है….वो कभी मस्ती के मूड में गला दबा भी देती है,
वो अल्हड है….वो सुलझी हुई है,
वो पढी लिखीं है….वो व्यवहार में कच्ची है,
वो सुशील है…..साथ ही लापरवाह भी,
वो ध्यान भी रखती है….ध्यान भटकाती भी है,
वो विश्वास भी रखती है….वो ताकीद भी देती है,
वो खिलखिलाती है….वो दाँत पिसती भी है,
वो कानों से कुछ अच्छा सुनना पसंद करती है….वो बहस को नज़रअंदाज़ करती है,
उसकी तारीफ़ करें या शिकायत ये समझ से परें है……
उसे राधा कहें या मीरा ये भी नही समझ पाता….
तुम बताओ कान्हा…. हम इसे प्रेम कहें या आसक्ति…
बताओ नं कान्हा…