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प्रभावित करने से आशय है कि असर करना यानि कि Effect न कि Impression

अब प्रश्न ,
प्रश्न- क्या हम ये कह सकते हैं कि विचारों का अंतिम उद्देश्य व्यक्ति को प्रभावित करना ही होता है ?          अथवा 

क्या कोई भी विचार मावन चेतना को स्पर्श किये बिना ही अपने सर्वोत्कृष्ट रूप को प्राप्त कर सकता है ?        अथवा 

इसी प्रश्न के ही एक अंग के रूप में मैं यह प्रश्न पूछना चाहता हूँ कि , क्या किसी एक व्यक्ति की कल्पनाशीलता , किसी किसी व्यक्ति की चिंतनशीलता का अंतिम उद्देश्य किसी और व्यक्ति को प्रभावित नहीं , ...करना होता है, 

क्या कोई विचार किसी व्यक्ति को प्रभावित किये बिना अपने उस उद्देश्य को प्राप्त कर सकता , या उन ऊंचाइयों को छू सकता है, जहाँ तक उसकी उड़ान की कल्पना की जा सकती है, 

इस प्रश्न का एक अर्थ ये भी है, कि ऐसा विचार जो केवल मनोमस्तिष्क की सीमाओं में एक बार उपज कर उसकी सीमाएं लांघ नहीं सका ,क्या उस विचार में प्रगति की संभावनाएं हो सकती हैं – 

ऐसा विचार जो व्यक्ति को मानसिक और जीवन में दोनों तरह से प्रभावित करता है, ऐसे विचार की प्रगति की संभावनाएं क्या हैं ,


अब जो प्रश्न पूछ रहा हूं , वो इससे अलग है, पर बार –बार ऐसा नहीं होता है कि यही बात दुबारा इसी रूप में आये इसलिए लिख रहा हूँ- 

क्या विचारों का जन्म स्वतंत्र होता है, विचारों के जन्म में सबसे बड़ा रोल किसका होता है, मुझे नहीं पता है, पर मैं मानता हूँ, सिर्फ मानता हूं,  मेरा अपना मानना है कि  विचारों के जन्म के लिए सबसे प्रारम्भिक प्रणेता आँखे होतीं हैं, उसमें भी तन की आँखे सबसे पहले । 

क्या हम ये मान सकतें हैं कि यकीनन विचारों की जन्मभूमि मनोमस्तिष्क ही है, लेकिन प्रेरक आँखे ही हैं, आंखे ही वो अनुकूल माहौल तैयार कर सकती हैं , जहाँ मस्तिष्क कर करने के लिए तैयार हो पाता है।  


#मृदुलकुमार_selftalk