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// #दर्पण //
एक तू ही तो मेरा अपना है दर्पण,
जिससे खुल के बात करे मेरा मन;
पलमें पढ़ लेता है, तू मेरा अंतर्मन,
तू है, जो मुझे समझता इस चमन।
तुझ से बांटा अपना हर सुख दुख,
एक नज़र में भांप लेता मेरा मुख;
तन की मन की तू जाने सब कुछ,
नयन मिलाके तू बना देता है, बुत।
तुझ में देख मुख ह्रदय पाता सुख,
रोते चेहरे पल में हो जाते हसमुख;
जैसा है, वैसा ही दर्शाता सब कुछ,
तेरे सम्मुख कुछ ना रह पाता गुप्त।
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