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#बसंत_अभिनंदन

चढ़ रही धरा उन्मुक्त हो शिखर,
हौलेे हौले बदल रहे ऋतु तेवर;
धरा निरंतर बदल रही रुप स्वर,
प्रकृति पल नहीं रहती बे ख़बर।

प्रणय प्रेम प्रफुल्लित पर पराग,
चेताकर चितवन अनंत चिराग;
ह्रदय भुला शरद- ऋतु अनुराग,
तरु डाल डाल छेड़त सुर- राग।

कुसुमित सुन्दर सुगंधित सुमन,
मन पुलकित करे पावन- पवन;
अधर हंसी मुख पट चैन अमन,
ह्रदय से बसन्त ऋतु अभिनंदन।

पुष्प मुस्कान खोल कोमल अधर,
देख रंग रूप होश खो बैठे भंवर;
इठलाती तितली फैला सुन्दर पर,
तरु तनू झूम बलखाए इधर उधर।