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#जिन्दगी की शाम
सुरमई सिन्दूरी शाम
पंछियों की पंक्तियों में
मधुर गीत गाती दिखी
ये सुरमई शाम
अपनत्व की भावना में
रँग भेद जातपात
के भेद मिटाती दिखी ये शाम
भूले न भुलाई गई
ये जिन्दगी की शाम

जिन्दगी की आपा धापी में
सपने सँजोए दिखी ये शाम
अपने मुक़द्दर की कड़ियाँ
जोड़ती दिखी ये शाम
घर की याद में
लौटती दिखी ये शाम
बेगानों को अपना बनाती दिखी
ये जिन्दगी की शाम

चारों धाम के तीर्थ तेरे अन्दर
अपने आप का तू सिकन्दर
कहती दिखी ये शाम
सूर्य भी तुझे देख शरमा जाए
बादलों की ओट में जा छिप जाए
ऐसी दिखी ये सिन्दूरी शाम

जाने कितने रंगों से
मिलवाती दिखी ये शाम
बेगानों में खुद को अपना बताती
दिखी ये शाम
बीती बातों पे धूल डाल
कहती दिखी ये शाम
श्याम रँग में रँगी
जय श्री राधे राधे की
धुन गाती दिखी
ये जिन्दगी की शाम

जिन्दगी तेरी शाम बड़ी निराली
पपीहे की तान पे झूमती
दिखी तेरी राधा दिवानी
अमवा की डारी पे
कूके कोयलिया काली
मन मयूर नाच दिखावै
ता ता तहिया
जिन्दगी तेरी शाम बड़ी निराली
नए नए तान सुनावै
नए नए तान कु छ
समझ न आवै
पुराने धुन में गुनगुनाती दिखी
फिर भी बात मनवाती दिखी
जिन्दगी तेरी शाम के
अनगिनत किस्से जिन्दगी के
हिस्सों में बयां करती दिखी
हमें तो
जिन्दगी की शाम के आगे
भरता दिखा हर कोई पानी
मन की ज़ुबानी
बयाँ कर डाली
जिन्दगी तेरी शाम की
हर कोई दोहराए कहानी
इसमें कोई राजा न रानी
फूलों सी महकती दिखी
जिन्दगी की शाम
फूलों सी ....