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'प्रेम' पर विचार करते ही दो नाम तुरंत मानसपटल पर छा जाते; राधा और मीरा! पांच वर्ष की आयु में मीरा को बहलाने के लिए माता वीरकुंवरी जी ने जब गिरधर को ही बींद बतलाया...पर वो तो प्राण न्योछावर कर चूकी! लोकरीति उसे भी न समझ आई। पर यहाँ लिखना है एक व्यक्ति की वीरता पर..! पंद्रह की होते-होते जब मीरा का चितौड़ के राजकुंवर भोजराज के साथ ब्याह तय हुआ तब मीरा की व्यथा सुनते ही तुरंत वो बीस वर्ष के सुकुमार बोले, " यदि ईश्वर ने मुझे निमित्त बनाया है तो मैं वचन देता हूँ कि केवल दुनिया की दृष्टि में ही बींद बनूँगा, आपके लिए नहीं। जीवन में कभी भी आपकी इच्छा के विपरीत आपके देह को स्पर्श भी नही करूँगा.. आपके पति गिरधर गोपाल मेरे स्वामी और आप मेरी स्वामिनी!"  धन्य है वो वीर जिसने अपने स्वार्थ को चीर दिया, जब की उनका प्रेमाच्छादित हृदय मीरा के चरणों में बिछ गया था। आज तक रिवाज में बंध कई फूल, धूल बन चूकी होंगी... जिस पर समाज  चलता है..! जब कहीं जिसका मन एक जगह समर्पित हो तब कोई तो हो जो उसे इच्छारहित पाप से बचाए! दो खिलौने को विवाह के वचन दिलाने से वो पति- पत्नी नहीं बन जाते.. प्रेम ही पूजा है, बाकी सब व्यवहार! सादियां बदली, पर न बदले स्त्री के प्रश्न और न ही लोकरीति..! (ऐसा नहीं की सिर्फ स्त्री के साथ ही होता, पर पुरुष पर उतने अधिकतम बंधन नहीं होते..और पत्नी को ही परमेश्वरी मानने की मान्यता भी कहाँ..! ) आज भी कई स्त्रीयों का मन खंडित होता है पर राजा भोज जैसा वीर है जो नारी के मन की रक्षा करना चाहता हो..? भोजराज जैसे वीर हृदय से आदरणीय है।🙏

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