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कभी दो पल सुकुन के बैठ कर,
ऐसी नज़्म सुना, जिसमें हो कोई...।
ऊंचे शिखर से गिरकर उठने की बाते
बहुत किस्मत खफा हो जाने के बाद भी,
एक कतरा भर जोश से जीवट जीने की राहें...।
बह के आंसू सूख गए हो, आंखे थक जाने के बाद,
फिर बता ए राह कोई नई किरण की...।
एक नज्म ऐसी भी हो, इंतजार में बैठे सख्स,
खत्म हो गई सब जीवन की बातें,
फिर दूर अनजान आहट से जिंदा होने की बात...।
उड़ा ले गए हो तूफान आसियाने जब,
तब भी बात हो घटा से बरसने की आस...।
अस्त हो गए हो जब किस्मत के सूरज,
लिखी जाय तब सुहानी ढलती हुई शामों की बातें..
सब हारने के बाद भी लिखी जाए नज्में ऐसी,
जिसमें जिक्र किया हो, फिर हारूंगा तो भी जीतूंगा कभी...।।
✍️अरूण लाल "अरुण"
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